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सुंदर लाल बहुगुणा 23: हिमालय से दक्षिण पहुंचा पेड़ बचाने का आंदोलन

समाजसेवा का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने आए पांडुरंग बने बहुगुणा के शार्गिद  पांडुरंग ने आंदोलन छेड़ सरकार को वन नीति बदलने को किया मजबूर   उत्तराखंड और हिमाचल के बाद हरे पेड़ों को बचाने का आंदोलन दक्षिण भारत के कर्नाटक में भी शुरू हो गया। पांडुरंग हेगड़े के नेतृत्व में सिरसी के ग्रामीण पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उनसे चिपक गए। कन्नड़ में आंदोलन को नाम दिया गया अप्पिको। आंदोलन का असर इतना व्यापक था कि सरकार को हरे पेड़ों के कटान पर रोक के साथ ही अपनी वन नीति में बदलाव को भी मजबूर होना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय से 80 के दशक में बहुगुणा से समाजसेवा का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने आए एमएसडब्लू के होनहार छात्र पांडुरंग, बहुगुणा से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने नौकरी की बजाय अपना जीवन भी उनकी तरह ही प्रकृति संरक्षण के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लिया। पांडुरंग पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाने के लिए बहुगुणा की कश्मीर-कोहिमा पदयात्रा में शामिल हुए। यात्रा के बाद पांडुरंग ने बहुगुणा को अपने यहां आने का न्योता भेजा। बताया कि उनके यहां भी सरकार व्यापारिक प्रजाति के पेड़ पनपाने के लिए प्राकृति
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चीड़, सफेदा, पौपलर नहीं लगेगा, धरती मां के दुश्मन हैं

सिंहुता में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कृष्णमेट   बहुगुणा जी की डायरी से हरे पेड़ों की कटाई पर रोक के बाद वृक्षारोपण पर दिया जोर, फाइव एफ ट्री का दिया नारा हिमाचल में नर्सरियों से सफेदा और चीड़ के पौधे उखाड़े, उपमन्यु समेत तीन लोग गए जेल विदेशी प्रजाति के प्रकृति के लिए घातक पौधे लगाने का किया विरोध, उनकी जगह पंच जीवन पौधे रोपे कोयले की भट्टियां उजाड़ी कहा, सूखी लकड़ी पर पर पहला हक स्थानीय लोगों का सिल्यारा में वन विभाग के दफ्तर पर महिलाओं ने दिन में छिलके जलकर किया प्रदर्शन हरे पेड़ों के कटान पर रोक के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने वृक्षारोपण पर ध्यान केंद्रित किया। अपनी लंबी यात्राओं से उन्हें प्राकृतिक वनों में एकल प्रजाति के पौधे लगाने  और खासकर चीड़, पौपलर और सफेदा (यूकेलिप्टिस) से धरती को पहुंचने वाले नुकसान का व्यावहारिक ज्ञान हो गया था। एकल प्रजाति के और विदेशी पौधे लगाने का विरोध करते हुए उन्होंने स्थानीय लोगों की जरूरत के मुताबिक खाद्य,चारा,खाद,रेशा और जलाऊ लकडी प्रदान करने वाले पारंपरिक पंच जीवन पौधे ही लगाने की बात कही। इसके लिए उन्होंने फाइव एफ ट्री(फूड, फौडर, फर्टीलाइजर, फा

सुंदर लाल बहुगुणा 21: घास लाखड़ू माटू पाणी, यां का बिना योजना काणी

विश्व पटल पर पहुंचाया चिपको का संदेश वर्ल्ड एनर्जी कान्फ्रेंस में दिखाए तेवर पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर लेकर महिलाओं के साथ यूएनओ में किया प्रदर्शन वनों पर पहला हक स्थानीय लोगों का हो, संयुक्त राष्ट्र में दी दलील वर्ष 1981 में केन्या की राजधानी नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र के यूनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट ने वर्ल्ड एनर्जी कान्फ्रेंस का आयोजन किया। उद्घाटन के समय कार्न्फेंस हॉल में देश विदेश से आए प्रतिनिधियों ने चकित होकर देखा कि एक अजीब सा आदमी पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर उठाए हॉल में घुसा चला आ रहा है। सफेद दाढ़ी और सफेद सांफे से अपने लंबे बाल बांधे इस आदमी ने ऊनी मिरजई और गरम पायजामा पहना था। कंधे में लटके झोले में किताबें भरी थीं। उसने काउंटर पर अपना नाम लिखाया सुंदर लाल बहुगुणा इंडिया। बाद में उसने जिज्ञासुओं को बताया कि लकड़ी का यह गठ्ठर उन करोड़ों ग्रामीण महिलाओं की कष्ट भरी जिंदगी का प्रतीक है जिन्हें खाना बनाने के लिए लकड़ी इकठ्ठा करने के लिए कई किमी दूर जाना पड़ता है और उनका पूरा दिन उसीमें चला जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गलत सरकारी वन नीति की वजह से अब वे अपने घर के आस पास से लकड़ी नहीं ले सक

सुंदर लाल बहुगुणा 20: पर्यावरण की रक्षा के लिए कश्मीर से कोहिमा तक पूरे हिमालय को पैदल ही नाप डाला

श्रीनगर से 30 मई 1981 को शुरू हुई 4870 किमी की पदयात्रा कोहिमा में 1 फरवरी 1983 को पूरी हुई चार चरणों में पूरी हुई यात्रा का 2 फरवरी को कोहिमा के राजभवन में पौधे रोपकर हुआ विधिवत समापन हिमालय की लंबी यात्राओं के बाद चिपको बहुगुणा के मन में यह बात गहराई से बैठ गई थी कि आर्थिक फायदे के लिए अत्याधिक पेड़ कटान से हिमालयी क्षेत्र की धरती इस कदर जख्मी हो गयी है कि इसके घावों के भरने तक हरे पेड़ों को काटना बिल्कुल बंद करना होगा। इसके लिए उन्होंने नारा दिया था इकोलजाॅजी इज परमानेंट इकोनाॅमी। बहुगुणा के इस नए दर्शन से सरकारों के अलावा उनके कई साथी भी उनसे नाराज हो गए थे लेकिन धुन के पक्के सुंदर लाल ने इसकी परवाह नहीं की और हिमालय की एक लंबी यात्रा के जरिए अपनी बात आम जन मानस तक पहुंचाने की ठानी। चिपको आंदोलन की गूंज तब तक विदेशों में भी पहुंच गई थी। और पदयात्राओं को माना जाता था चिपको का एक अहम हिस्सा। स्विस समाजशास्त्री गेरहार्ड फिस्टर ने वर्ष 1981 में अपने देशवासियों को बताया था कि चिपको आंदोलन की विशेषता यह है कि पदयात्रा करने वाले लोग अपने दिल की बात कहते हैं। इसलिए लोगों के दिलों तक पहुंचत

सुंदर लाल बहुगुणा 19: आतंक का पर्याय बने उम्मेद सिंह ने छोड़ी अपराध की दुनिया

उत्तराखंड को 1973-74 में पैदल नाप रहे बहुगुणा को उम्मेद सिंह मिला था जंगल में जंगल से बहुगुणा उसे लौटा लाए घर, रात में मॉं के सामने लिवाई अपराध छोड़ने की शपथ उम्मेद लूटपाट और अवैध शराब बनाना छोड़कर गांव में बिताने लगा सामान्य जीवन स्थानीय प्रशासन ने ली राहत की सांस, पिथौरागढ़ में आयोजित हुआ बड़ा समारोह उत्तराखंड को पैदल नापते हुए सुंदर लाल बहुगुणा वर्ष 1973 के आखिर में जब पिथौरगढ़ जिले में पहुंचे तो वहां दस्यु उम्मेद सिंह का आतंक था। सरकारी उपेक्षा से खिन्न पूर्व फौजी उम्मेद सिंह ने अपराध का रास्ता चुन लिया था। वह दारू (कच्ची शराब) बनाता और लूटपाट भी करता था। एक बार पुलिस ने उसे पकड़ कर लोहाघाट की जेल भी पहुंचाया लेकिन छूटते ही वह फिर से अपराध की दुनिया मंे शामिल हो गया। एक बार जेल जाने के बाद बीसा बजेड़ गांव के उम्मेद सिंह ने पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए जंगलों में अपना ठिकना बना लिया था। साथ ही वह अपना ठिकाना भी बदलता रहता था। जंगलों में ही दारू बनाकर वह उसका अवैध करोबार करने लगा। इसमें सहयोग केे लिए उसने अपना एक गिरोह भी बना लिया था। यही नहीं वह अपने इलाके से गुजरने वाले ग्रामीणों से ल

World Environment Day 2022

सुंदर लाल बहुगुणा 18: सरकार ने पेड़ काटना नहीं रोका तो पद्मश्री भी ठुकरा दी

नई दिल्ली में इंदिरा गांधी से सहयोगियों के साथ मुलाकात करते बहुगुणा Access the english version here. इंदिरा गांधी के विनम्र आग्रह को भी धुन के पक्के चिपको बहुगुणा ने नहीं माना इंदिरा के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को पेड़ काटने पर लगाना पड़ा पूर्ण प्रतिबंध 26 जनवरी 1981 को पेड़ों को बचाने के चिपको आंदोलन के लिए सुंदर लाल बहुगुणा को पद्मश्री देने की घोषणा हुई। चिपको आंदोलन के बहुगुणा के साथी इससेे खुश थे। लेकिन चिपको बहुगुणा ने हरे पेड़ काटने पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाने पर पद्मश्री लेने से इनकार कर दिया।  धुन के पक्के बहुगुणा ने आंदोलन के प्रति सकारात्म रुख रखने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह को भी विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि धरती हमारी मां है और जब तक हरे पेड़ कटते रहेंगे और धरती मां का लहू मांस  ;मिट्टी, पानीद्ध बहकर जाता रहेगा वे पुरुस्कार  कैसे ले सकते हैं। बाद में इंदिरा गांधी के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना पड़ा। हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर रोक के आश्वासन के बावजूद तत्कालीन यूपी सरकार ने

बहुगुणा 17 : वानर सेना ने किया उत्पात तो बहुगुणा ने कहा नमस्ते

खुरेत में पेड़ काटने आए ठेकेदार ने मदद के लिए बुलाई पुलिस गांव में पीने के पानी की समस्या उठा कर ग्रामीणों को आंदोलन से जोड़ा आंदोलन के बाद लंबे समय से प्यासे खुरेत के ग्रामीणों को मिला पीने का पानी हेंवल नदी के उद्गम खुरेत के जंगल से हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने पहले छात्रों का सहारा लिया लेकिन वानर सेना ने ऐसा उत्पात मचाया कि दो दिन बाद ही बहुगुणा ने उन्हें नमस्ते कह दिया। बाद में अपने समर्पित साथियों के सहयोग से खुरेत गांव की पीने के पानी की समस्या के माध्यम से उन्होंने आंदोलन में गांव वालों को जोड़ा और जंगल कटने से बचा लिया। बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 24 दिन के उपवास के बाद सुंदर लाल बहुगुणा को राम नरेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध का आश्वासन दिया था। लेकिन पहले लासी और फिर खुरेत में चीड़ के हरे पेड़ काटने ठेकेदार के मजदूर पहुंच गए। बहुगुणा ने स्थानीय लोगों और अपने समर्पित साथियों के सहयोग से दोनों ही जगहों पर पेड़ कटने से बचाए। इस बीच सरकारें बदलीं और राज्य और कंेद्र के मुखि

सुंदर लाल बहुगुणा 16 : लासी में 300 मजदूरों को वापस खदेड़ दिया

ठेकेदार की मदद के लिए सशस्त्र पुलिस बल लेकर आए अधिकारी नहींे कटा पाए एक भी पेड़ आंदोलन से पूरे इलाके के ग्रामीणों को जोड़ने के लिए जंगल में ही हुआ भागवत कथा का आयोजन दो महीने की प्रतीक्षा के बाद पेड़ काटने में असफल रहे ठेकेदार ने मजदूर लौटाए बडियारगढ़ से सुंदर लाल बहुगुणा को जेल भेजने पर पेड़ काटने के खिलाफ आंदोलन को मिले व्यापक समर्थन के बाद उत्तर प्रदश सरकार ने बडियारगढ़ और कांगड़ में तो हरे पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी लेकिन ढुंगमंदार पट्टी के लासी गांव के ऊपर जंगल में चीड़ के पेड़ काटने का ठेका एक नामी ठेकेदार को दे दिया। सुंदर लाल बहुगुणा को जैसे ही इसका पता चला उन्होंने 9 अक्तूबर 1979 से जंगल में ही एक झोपड़ी में उपवास शुरू कर दिया। लासी के ग्रामीण उनके पास आए और बहुगुणा को भरोसा दिलाया कि वे पेड़ नहीं कटने देंगे। ग्रामीणों ने इसके लिए एक वन सुरक्षा समिति बनाई। इसके लिए 25 सदस्य चुने गए। रणवीर सिंह चौहान को को इसका संयोजक बनाया गया। सोना देवी और कुंवर सिंह भी इसके सदस्यों में शामिल थे। पेड़ काटने के विरोध में वन सुरक्षा समिति ने एक रिपोर्ट बनाई और उसकी कॉपी डीएफओ, डीएम और वन संरक्षक को भे

कलेंडर के आइने में पर्यावरण के गांधी सुंदर लाल बहुगुणा की जीवन यात्रा

1927- 9 जनवरी भागीरथी के किनारे टिहरी जिले के मरोड़ा गांव में जन्म। गंगा भक्त मां-बाप ने नाम दिया गंगाराम  1935 - वन अधिकारी पिता अंबादत्त बहुगुणा का निधन  1935 - पढ़ाई के लिए अपने रिश्तेदार के यहां टिहरी आए। प्रताप कॉलेज में दाखिला लिया  1940 - टिहरी रियासत के खिलाफ आजदी का बिगुल फूंकने वाले श्रीदेव सुमन के साथ टिहरी में पहली मुलाकात  1941 - राजशाही के खिलाफ नारद नाम से अखबारों में समाचार भेजना शुरू किया   1942 - राजशाही की खिलाफत करने पर अपने राजभक्त परिवार से मतभेद के चलते घर छोड़ दिया  1942 - गर्मियों की छुट्टी में मसूरी में श्रीदेव सुमन द्वारा श्रमिकों के लिए खोली गई रात्रि पाठशाला में अध्यापन  1942 - मां पूर्णा देवी का निधन, एकादशी के दिन भागीरथी में नहाने गईं और नदी में ही समां गईं  1944 - श्रीदेव सुमन को जेल में दी जा रही यातना और सुमन का जेल के अंदर ही दिया बयान अखबारों में छपवाया  1944 - समाचार छपते ही टिहरी रियासत की पुलिस ने 19 मार्च को हिरासत में लिया। हिरासत में ही बारहवीं की परीक्षा दी  1944 - 19 मार्च को पुलिस ने गिरफ्तार कर नरेंद्रनगर हवालात में बंद कर दिया। 5 महीने बाद ह

सुंदर लाल बहुगुणा 15: पेड़ों को बचाने के लिए जीवन दांव पर लगा दिया

बड़ियारगढ में घर घर से रोटी मांगते चिपको आंदोलनकारी Click here for english version Click here for english version बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों की कटाई के विरोध में सुंदर लाल बहुगुणा ने किया उपवास अपने 53 वें जन्मदिन पर शुरू किया उपवास तो मिलने लगा स्थानीय लोगों का समर्थन 24 दिन लंबा उपवास टिहरी और देहरादून जेल में भी जारी रहा, समर्थन में उमड़े लोग सरकार के पेड़ों की कटाई पर रोक के आश्वासन के बाद देहरादून जेल में तोड़ा उपवास इसके बाद ही पर्वतीय इलाकों में हरे पेड़ों के कटान पर रोक के लिए वन संरक्षण अधिनियम बना श्रीनगर से 32 किमी दूर बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया। शुरू में स्थानीय लोगों का पूरा समर्थन नहीं मिला तो बहुगुणा को गांधी जी के उपवास का तरीका ही एकमात्र उपाय सूझा। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील तीखे ढालों पर हर हालत में पेड़ काटने पर उतारू वन निगम को उसकी गलती का ऐहसास दिलाने के लिए अपने 53वें जन्मदिन से उन्होंने उपवास शुरू कर दिया। बहुगुणा हरे चीड़ के पेड़ों को बचाने के लिए काटे जा रहे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और

सुंदर लाल बहुगुणा 14: एक वृक्ष 10 पुत्र समान

कांगड़ में पेड़ काटने आए मजदूरों ने कुल्हाड़ी छोड़ गैंती फावड़े उठाए कहा, अब पेड़ों को काटने को नहीं उठाएंगे कुल्हाड़ी, गोरियासौड़ में गड्ढे खोदकर फलों के पौधे रोपे सुंदर लाल बहुगुणा के सिल्यारा आश्रम के ऊपर धार गांव कांगड़ के जंगल में पेड़ काटने आए श्रमिकों ने बहुगुणा की अपील पर न केवल कुल्हाड़ियां छोड़ दीं बल्कि गैंती और फावड़े उठा लिए और गोरियासौड़ में फलदार पौधे रोप कर उनकी सुरक्षा के लिए पत्थरों की दीवार बनाने में जुट गए। बहुगुणा ने उनसे नारे लगवायेः- वृक्षारोपण कार्य महान, एक वृक्ष 10 पुत्र समान। चिपको की वजह से हेंवल घाटी में ठेकेदार के माध्यम से पेड़ कटाने में असफल रहने पर वन महकमे ने टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाॅक में वन निगम के द्वारा स्थानीय लोगों के माध्यम से पेड़ों को कटाने की योजना बनाई। अकेले धार गांव में 740 चीड़ के पेड़ काटने के लिए छापे गए थे। सिल्यारा गांव के ही पांच लोगों शक्ति प्रसाद, केदार सिंह, मोर सिह और सुंदर सिंह और सुरेशानंद को कर्मचारी बनाया और मजदूर भी स्थानीय रखे। लेकिन वे कांगड़ के ऊपर धार गांव के जंगल में चीड़ के पेड़ों का कटान शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। तब डीए