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Showing posts from December, 2021

सुंदर लाल बहुगुणा 15: पेड़ों को बचाने के लिए जीवन दांव पर लगा दिया

बड़ियारगढ में घर घर से रोटी मांगते चिपको आंदोलनकारी Click here for english version Click here for english version बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों की कटाई के विरोध में सुंदर लाल बहुगुणा ने किया उपवास अपने 53 वें जन्मदिन पर शुरू किया उपवास तो मिलने लगा स्थानीय लोगों का समर्थन 24 दिन लंबा उपवास टिहरी और देहरादून जेल में भी जारी रहा, समर्थन में उमड़े लोग सरकार के पेड़ों की कटाई पर रोक के आश्वासन के बाद देहरादून जेल में तोड़ा उपवास इसके बाद ही पर्वतीय इलाकों में हरे पेड़ों के कटान पर रोक के लिए वन संरक्षण अधिनियम बना श्रीनगर से 32 किमी दूर बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया। शुरू में स्थानीय लोगों का पूरा समर्थन नहीं मिला तो बहुगुणा को गांधी जी के उपवास का तरीका ही एकमात्र उपाय सूझा। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील तीखे ढालों पर हर हालत में पेड़ काटने पर उतारू वन निगम को उसकी गलती का ऐहसास दिलाने के लिए अपने 53वें जन्मदिन से उन्होंने उपवास शुरू कर दिया। बहुगुणा हरे चीड़ के पेड़ों को बचाने के लिए काटे जा रहे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और

सुंदर लाल बहुगुणा 14: एक वृक्ष 10 पुत्र समान

कांगड़ में पेड़ काटने आए मजदूरों ने कुल्हाड़ी छोड़ गैंती फावड़े उठाए कहा, अब पेड़ों को काटने को नहीं उठाएंगे कुल्हाड़ी, गोरियासौड़ में गड्ढे खोदकर फलों के पौधे रोपे सुंदर लाल बहुगुणा के सिल्यारा आश्रम के ऊपर धार गांव कांगड़ के जंगल में पेड़ काटने आए श्रमिकों ने बहुगुणा की अपील पर न केवल कुल्हाड़ियां छोड़ दीं बल्कि गैंती और फावड़े उठा लिए और गोरियासौड़ में फलदार पौधे रोप कर उनकी सुरक्षा के लिए पत्थरों की दीवार बनाने में जुट गए। बहुगुणा ने उनसे नारे लगवायेः- वृक्षारोपण कार्य महान, एक वृक्ष 10 पुत्र समान। चिपको की वजह से हेंवल घाटी में ठेकेदार के माध्यम से पेड़ कटाने में असफल रहने पर वन महकमे ने टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाॅक में वन निगम के द्वारा स्थानीय लोगों के माध्यम से पेड़ों को कटाने की योजना बनाई। अकेले धार गांव में 740 चीड़ के पेड़ काटने के लिए छापे गए थे। सिल्यारा गांव के ही पांच लोगों शक्ति प्रसाद, केदार सिंह, मोर सिह और सुंदर सिंह और सुरेशानंद को कर्मचारी बनाया और मजदूर भी स्थानीय रखे। लेकिन वे कांगड़ के ऊपर धार गांव के जंगल में चीड़ के पेड़ों का कटान शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। तब डीए