विश्व पटल पर पहुंचाया चिपको का संदेश वर्ल्ड एनर्जी कान्फ्रेंस में दिखाए तेवर
पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर लेकर महिलाओं के साथ यूएनओ में किया प्रदर्शन
वनों पर पहला हक स्थानीय लोगों का हो, संयुक्त राष्ट्र में दी दलील
वर्ष 1981 में केन्या की राजधानी नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र के यूनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट ने वर्ल्ड एनर्जी कान्फ्रेंस का आयोजन किया। उद्घाटन के समय कार्न्फेंस हॉल में देश विदेश से आए प्रतिनिधियों ने चकित होकर देखा कि एक अजीब सा आदमी पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर उठाए हॉल में घुसा चला आ रहा है। सफेद दाढ़ी और सफेद सांफे से अपने लंबे बाल बांधे इस आदमी ने ऊनी मिरजई और गरम पायजामा पहना था। कंधे में लटके झोले में किताबें भरी थीं। उसने काउंटर पर अपना नाम लिखाया सुंदर लाल बहुगुणा इंडिया। बाद में उसने जिज्ञासुओं को बताया कि लकड़ी का यह गठ्ठर उन करोड़ों ग्रामीण महिलाओं की कष्ट भरी जिंदगी का प्रतीक है जिन्हें खाना बनाने के लिए लकड़ी इकठ्ठा करने के लिए कई किमी दूर जाना पड़ता है और उनका पूरा दिन उसीमें चला जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गलत सरकारी वन नीति की वजह से अब वे अपने घर के आस पास से लकड़ी नहीं ले सकते।
अपने परिवार के लिए खाना बनाने के लिए उनके पास लकड़ी के अलावा और कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। उन्होंने बताया कि मैं इससे पहले केन्या की महिलाओं के जलाऊ लकड़ी की समस्या को लेकर निकाले जुलूस में शामिल हुआ था और वहीं से सीधे लकड़ी का गठ्ठर लेकर आ रहा हूं।
कान्फ्रेंस में सुंदर लाल ने इस समस्या को उठाया। उन्होंने कहा कि लुप्त होते वनों को तब तक नहीं बचाया जा सकता जब तक स्थानीय लोगों को वन संरक्षण से नहीं जोड़ा जाता। वनों के आस-पास रहने वालों के हाथों में ही वनों का प्रबंधन हो। और वनों की उपज पर पहला हक भी उन्हीं का हो।
चिपको बहुगुणा ने इसके लिए फाइव एफ ट्री का सूत्र भी दिया। कहा कि वनों के प्राकृतिक स्वरूप को बरकरार रखते हुए फाइव एफ (फूड, फोडर, फाइवर, फ्यूल, फर्टीलाइजर ) वाले पौधे लगें जिससे लोगों को अपनी जरूरत की सामग्री पास के ही वन से मिल जाय। कहा यही चिपको आंदोलन का संदेश भी है।
उन्होंने दलील दी कि किसी भी योजना में स्थानीय लोगों की जरूरतों के अनुरूप घास, लकड़ी, मिट्टी और पानी की उपलब्धता के समावेश के बिना उसका कोई मतलब नहीं है। इसके लिए उन्होंने नारा दिया घास लाखड़ू माटू पाणी, यां का बिना योजना काणी। याने आम लोगों की जरूरतों(घास, लकड़ी, मिट्टी,पानी) को शामिल किए बिना कोई भी योजना अधूरी है। अपनी इस दलील और चिपको के संदेश को विश्व पटल पर अपने अनोखे अंदाज में उन्होंने रखा। बहुगुणा को अगस्त 1981 में केन्या की राजधानी नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड एनजीं कान्फ्रेस में बुलाया गया था। वहां उन्हें अपनी जलाऊ लकड़ी की समस्या से जूझ रही महिलाएं मिलीं। बस फिर क्या था बहुगुणा ने लकड़ी का एक बड़ा सा गठ्ठर पीठ पर उठाया और कान्फेंस हाल तक महिलाओं के साथ प्रदर्शन करते हुए पहुंच गए। वहां कान्फ्रेस में शामिल होने आये विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने जब इस अनोखे प्रदर्शन के बारे में पूछा तो चिपको बहुगुणा ने तर्क दिया कि उनके जैसी विश्व की अधिसंख्य गरीब महिलाओं को जलाऊ लकड़ी के लिए रोज कई-कई किमी जाना पड़ता है और उनके आस पास न तो जलाऊ लकड़ी होती है और जहां होती भी है लोंगों को वनों से जलाऊ लकड़ी लेने का हक नहीं होता। उन्होंने कहा कि वन पर गांवों का अधिकार भी चिपको का संदेश है।
चिपको नेता ने दलील दी कि गांवों के आसपास ऐसे वन हों जिनसे स्थानीय लोगों की जरूरतें पूरी हो सकें। इसके लिए उन्होंने फाइव एफ टी का नारा दिया। फूड, फाइवर, फोडर, फ्यूल वुड और फर्टीलाइजर। इनका प्रबंधन ग्रामीणों के हाथ में हो। और संभव हो तो फाइव एफ टी के रोपण और पनपाने के लिए उन्हें तब तक निश्चित रकम दी जाय जब तक वे बड़े नहीं हो जाते और उनसे कुटीर उद्योगों के जरिए ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल जाता।
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