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Showing posts from January, 2020

सुंदर लाल बहुगुणा 3 मंदिर ईश्वर सबके

जो शिल्पकार भगवन की मूर्ति गढ़े मंदिर स्थापना के बाद उसको ही उस मूर्ति के दर्शन करने को न मिले यह बात शिल्पकारों को कचोटती थी। जातीय समानता के लिए ठक्कर बापा छात्रावास की स्थापना के बाद सुंदर लाल बहुगणा शिल्पकारों को मंदिर प्रवेश के अभियान में जुट गए। इस बीच कांग्रेस के दफ्तर से शुरू हुआ ठक्कर बापा छात्रावास का अपना भवन भी बन कर तैयार हो गया था। सुंदर लाल बहुगणा ने इसके लिए भिलंगना से अपनी पीठ पर पत्थर और रेत भी ढोए। छत के लिंटर केलिए दिन भर रोड़ियां भी फोड़ीं। छात्रावास के छात्रों और टिहरी केप्रसिद्व वकील वीरेंद्र दत्त सकलानी समेत कई लोगों ने पत्थर और रेत पहुंचाने के श्रमदान में हिस्सा लिया। लोग काम पर जाते वक्त एक पत्थर या एक कट्टा रेत का छात्रवास निर्माण के लिए छोड़ देते।       दलितों को समानता का अधिकार दिलाने की मुहिम में सुंदरलाल बहुगुणा को हरिजन सेवक संघ का भी सहयोग मिला। इससे कई उत्साही सवर्ण युवक बहुगुणा की मुहिम से जुड़े। टिहरी के बूढ़ाकेदार के सरोला ब्राह्मण धर्मानंद नौटियाल भी उनमें से एक थे। धर्मानंद नौटियाल  ने तो दलित भरपुरू नगवाण और बादर सिंह राणा को ...

सुंदर लाल बहुगुणा 2 - जातीय भेदभाव मिटाने की लड़ाई से हुई शुरुआत

टिहरी राजशाही के खिलाफ श्रीदेव सुमन की लड़ाई को लाहौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी रियासत में कांग्रेस के पदाधिकारी के रूप में आगे बढ़ाया। इस बीच 11 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को राजशाही द्वारा की गई हत्या से फैली विद्रोह की चिनगारी ने 14 जनवरी 1948 राजशाही का तख्ता पलट दिया। कीर्तिनगर से दोनों शहीदों के शवों को लेकर अपार जनसमूह टिहरी के लिए बढ़ चला। टिहरी के कोने-कोने से जनता  भी 14 जनवरी को मकरैण के लिए साथ में दाल  चावल लेकर  टिहरी पहुंची। जनता में राजशाही के खिलाफ इतना आक्रोश था कि राजतंत्र के लोगों की जान बचाने को टिहरी जेल में बंद करना पड़ा। उसी दिन राजशाही का आखिरी दिन था। प्रजामंडल की सरकार बन गई। तब सुंदर लाल बहुगुणा प्रजामंडल के मंत्री थे लेकिन वे सरकार में शामिल होने की बजाय कांग्रेस के महामंत्री बने। वे घंटाघर के पास कांग्रेस के दफ्तर में रहते थे। तब शराब का प्रकोप जोरों पर था। सबसे खराब स्थिति टिहरी शहर की दलित बस्ती की थी। यहां के पुरुष शराब के नशे में रात में अपने परिवार के साथ गालीगलौज और मारपीट करते थे। इसस...
सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म टिहरी से 7 मील दूर भागीरथी नदी के पास बसे गांव में मरोड़ा में 9 जनवरी 1927 को हुआ। उनके पिता अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे तो नाना अभय राम डोभाल राजभक्त जमीदार। लेकिन गांधी जी के शिष्य श्रीदेव सुमन ने टिहरी राजशाही के भक्त परिवार में जन्मे सुदर लाल के जीवन की दिशा ही बदल दी। वह तब महज 13 साल के थे जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। अन्य बच्चों के साथ सुंदर लाल भी मैदान जमनालाल बहुगुणा सम्मान ग्रहण करते सुंदर लाल बहुगुणा सिल्यारा आश्रम की पनचक्की का संचालन करते सुंदर लाल बहुगुणा सिल्यारा में 1957 में अपनी कुटिया में सुंदर लाल बहुगुणा और आश्रमवासी लायलपुर (लाहौर) में 1945-46 में सरदार मान सिंह के रूप में सुंदर लाल बहुगुणा में खेल रहे थे। अचानक एक अजनबी युवक वहां आया। उसने खादी का कुर्ता टोपी और धोती पहनी थी। उसके पास एक संदूकची थी। बच्चों ने कौतूहलवश युवक से पूछा कि संदूकची में क्या है तो उसने संदूकची खोली और पेड़ की छांव में बैठकर चरखे पर सूत कातने लगा। सुमन ने कहा कि यह गांधी जी का चरखा है। इससे हम अपने कपड़े खुद बनाएंगे ...