नई दिल्ली में इंदिरा गांधी से सहयोगियों के साथ मुलाकात करते बहुगुणा |
इंदिरा गांधी के विनम्र आग्रह को भी धुन के पक्के चिपको बहुगुणा ने नहीं माना
इंदिरा के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को पेड़ काटने पर लगाना पड़ा पूर्ण प्रतिबंध
26 जनवरी 1981 को पेड़ों को बचाने के चिपको आंदोलन के लिए सुंदर लाल बहुगुणा को पद्मश्री देने की घोषणा हुई। चिपको आंदोलन के बहुगुणा के साथी इससेे खुश थे। लेकिन चिपको बहुगुणा ने हरे पेड़ काटने पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाने पर पद्मश्री लेने से इनकार कर दिया।
धुन के पक्के बहुगुणा ने आंदोलन के प्रति सकारात्म रुख रखने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह को भी विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि धरती हमारी मां है और जब तक हरे पेड़ कटते रहेंगे और धरती मां का लहू मांस ;मिट्टी, पानीद्ध बहकर जाता रहेगा वे पुरुस्कार कैसे ले सकते हैं। बाद में इंदिरा गांधी के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना पड़ा।
हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर रोक के आश्वासन के बावजूद तत्कालीन यूपी सरकार ने पेड़ों का कटान नहीं रोका। उधर इस बीच केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता संभाल ली। इंदिरा गांधी पेड़ों को बचाने के चिपको आंदोलन से बेहद प्रभावित थीं। तब पहाड़ के हेमवती नंदन बहुगुणा राजनीति में बेहद चर्चित थे। ऐसे में इंदिरा गांधी सुंदर लाल बहुगुणा को चिपको बहुगुणा कहा करतीं थीं। इंदिरा गांधी ने पहाड़ों पर हरे पेड़ों को काटने से रोकने के लिए एक समिति बनाई। जिसकी सिफारिश पर ही वन संरक्षण अधिनियम बना।
केंद्र और यूपी की सरकारें बदलीं तो पहाड़ में पेड़ों को बचाने के लिए शुरू हुए चिपको आंदोलन के प्रति सरकारों का रुख भी बदला। यूपी सरकार अंग्रेजों के समय से पेड़ काट कर पैसा कमाने की नीति पर कायम थी। पत्रकारों के प्रायोजित दौरे करवाकर चिपको आंदोलन कारियों को जन विरोधी करार करने की भी कोशिशें हुईं। चिपको आंदोलन के बहुगुणा के कुछ साथी भी सराकार की बोली बोलने लगे। लेकिन चिपको बहुगुणा पेड़ों की मुख्य देन हवा पानी और मिट्टी मानते थे। उनकी मांग थी कि स्थानीय लोगों की जरूरत को छोड़कर पेड़ों के कटान पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगे। जब ऐेसा हुआ तभी वह माने।
बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 24 दिन के उपवास के बाद सुंदर लाल बहुगुणा को राम नरेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध का आश्वासन दिया था। लेकिन पहले लासी और फिर खुरेत में चीड़ के हरे पेड़ काटने ठेकेदार के मजदूर पहुंच गए। बहुगुणा ने स्थानीय लोगों और अपने समर्पित साथियों के सहयोग से दोनों ही जगहों पर पेड़ कटने से बचाए। इस बीच सरकारें बदलीं और राज्य और कंेद्र के मुखिया भी। ऐसे में पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन और सुंदर लाल बहुगुणा के प्रति उनका नजरिया भी बदला। उत्तर प्रदेश में बनारसी दास मुख्यमंत्री तो केंद्र में चैधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। पेड़ उन्हें फिर राजस्व कमाने का अहम जरिया लगने लगे। बहुगुणा ने दिल्ली जाकर चैधरी चरण सिंह को अपनी बात समझाने की की कोशिश की लेकिन चैधरी साहब ने कह दिया कि तुमसे कोई बात नहीं हो सकती तुमने वन मं़त्री ;यूपी के तत्कालीन वन मंत्री श्रीचंदद्ध का विरोध किया है। पेड़ काट कर राजस्व कमाने की अपन नीति को सही साबित करने के लिए मीडिया का सहारा भी लिया गया। इसके लिए पत्रकारों को दौरे प्रायोजित कर पहाड़ भेजा गया और यह सबित करने की कोशिश की गयी पहाड़ के लोग बहुगुणा के साथ नहीं हैं। लेकिन बहुगुणा ने हार नहीं मानी।
बनारसी दास के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बने। वे भी पेड़ काटकर राजस्व कमाने की नीति पर कायम रहे। ऐसे में जब बहुगुणा ने पद्मश्री ठुकरा दी तो इंदिरा गांधी ने पेड़ कटान पर रोक के मामले में विश्वनाथ प्रताप सिंह को दिल्ली तलब किया। विश्वनाथ प्रताप सिंह का तर्क था कि पेड़ कटान यूपी के राजस्व का प्रमुख जरिया है। इंदिरा गांधी ने कहा ठीक है तुम पेड़ काटकर ही पैस कमा लो मैं कंेद्र से यूपी को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद कर देती हूं। ऐसे में इंदिरा गांधी के कड़े रुख और पेड़ कटान पर प्रतिबंध के लिए केंद्रीय वन अधिनियम 1980 लागू होने से 1000 मीटर से ऊपर हरे पेड़ों के कटान पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया।
जारी--------
सुंदर लाल बहुगुणा को भेजा गया तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पत्र |
Comments
Post a Comment