ठेकेदार की मदद के लिए सशस्त्र पुलिस बल लेकर आए अधिकारी नहींे कटा पाए एक भी पेड़
आंदोलन से पूरे इलाके के ग्रामीणों को जोड़ने के लिए जंगल में ही हुआ भागवत कथा का आयोजन
दो महीने की प्रतीक्षा के बाद पेड़ काटने में असफल रहे ठेकेदार ने मजदूर लौटाए
बडियारगढ़ से सुंदर लाल बहुगुणा को जेल भेजने पर पेड़ काटने के खिलाफ आंदोलन को मिले व्यापक समर्थन के बाद उत्तर प्रदश सरकार ने बडियारगढ़ और कांगड़ में तो हरे पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी लेकिन ढुंगमंदार पट्टी के लासी गांव के ऊपर जंगल में चीड़ के पेड़ काटने का ठेका एक नामी ठेकेदार को दे दिया।
सुंदर लाल बहुगुणा को जैसे ही इसका पता चला उन्होंने 9 अक्तूबर 1979 से जंगल में ही एक झोपड़ी में उपवास शुरू कर दिया। लासी के ग्रामीण उनके पास आए और बहुगुणा को भरोसा दिलाया कि वे पेड़ नहीं कटने देंगे। ग्रामीणों ने इसके लिए एक वन सुरक्षा समिति बनाई। इसके लिए 25 सदस्य चुने गए। रणवीर सिंह चौहान को को इसका संयोजक बनाया गया। सोना देवी और कुंवर सिंह भी इसके सदस्यों में शामिल थे।
पेड़ काटने के विरोध में वन सुरक्षा समिति ने एक रिपोर्ट बनाई और उसकी कॉपी डीएफओ, डीएम और वन संरक्षक को भेजी। रिपोर्ट में कहा गया था कि कटने वाले पेड़ तेज ढलान पर हैं। इनके कटने से नीचे लासी गांव के लिए भूस्खलन का खतरा पैदा हो जाएगा। साथ ही इस जंगल पर आसपास के लगभग एक दर्जन गांवों के लोग घास लकड़ी के लिए निर्भर हैं इसलिए यहां पेड़ न काटे जाएं।
ग्रामीणों की मांग को ठेंगा दिखाते हुए ठेकेदार अगले ही दिन 300 मजदूरों को लेकर नजदीक मोटर पड़ाव घोंटी पहुंच गया। गांव वालों को इसकापताचला तो उन्होंने प्रण लिया कि वे किसी भी सूरत में पेड़ काटने आ रहे मजदूरों को जंगल में नहीं घुसने देंगे। बैठक में गांव के खच्चर संचालक भी आए। उन्होंने भरोसा कि वे पेड़ काटने वालों का सामान किसी भी हालत में गांव नहीं पहंुचाएंगे। एक महीने तक जंगल में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाए ठेकेदार को वन विभाग और जिला प्रशासन ने पेड़ कटान में पुलिस की मदद का भरोसा दिलाया। ऐसे में जंगल में मजदूरों को लेकर प्रवेश की कोशिशों में जुटे ठेकेदार को अपनी ताकत दिखाने के लिए गांव वालों ने 12 नवंबर को लासी से लेकर 6 किमी दूर घोंटी कस्बे तक जुलूस निकाला। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे-
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार जिंदा रहने के आधार।
भले कुल्होड़े चमकेंगे, हम पेड़ों पर चिपकेंगें, पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ कटेंगे।
ग्रामीणों ने मजदूरों से कहा कि उन्हें लासी के जंगल में हर्गिज नहीं आने दिया जाएगा। ऐसे में या तो वे वापस घर चले जायं या फिर किसी दूसरे जंगल में। लेकिन एक हफ्ते बाद ही 7 नवंबर को ठेकेदार के कहने पर मजदूर जंगल की तरफ चल दिए। लकिन उनके ासी गांव पहुंचते ही बड़ी संख्या में ग्रामीण जुट गए और ढोल बाजों के साथ उन्हें वापस घोंटी खदेड़ दिया। ठेकेदार के पक्ष में वन विभाग ने गांव वालों के खिलाफ एडीएम को एक रिपोर्ट दी जिसमें आरोप लगाया गया था कि गांव वालों ने पेड़ काटने गए मजदूरों को जान से मारने की धमकी दी और उन पर पत्थर फेंके। एडीएम ने साक्ष्य के तौर पर कोई घायल मजदूर प्रस्तुत करने को कहा।
इसके बाद 5 दिसंबर को वन संरक्षक ग्रामीणों को डराने के लिए एसडीएम और पुलिस बल के साथ लासी के जंगल पहुंचे उन्होंने वहां मौजूद सुंदर लाल बहुगुणा से दलील की कि पुराने पेड़ नहीं कटेंगे तो नए कैसे पनपेंगे। बहुगुणा ने कहा कि विभाग की यह थ्यौरी बिल्कुल गलत है। पेड़ शुद्ध हवा और पानी देते हैं। तीखे ढालों पर पेड़ कटने से भूसखलन और रेड़े रवाड़े आते हैं जो तबाही का कारण बनते हैं। वन संरक्षक के पुलिस के साथ जंगल में पहुंचने की खबर मिलते ही बड़ी संख्या में ग्रामीण ढोल बाजों के साथ वहां पहुंच गए। वे वन संरक्षक को कटने के लिए अंकित पेड़ों का मुआयना कराने ले गए। मुआयने के बाद वन संरक्षक को स्वीकार करना पड़ा कि कटने को अंकित पेड़ तीखे ढालों पर भी हैं। उन्होंने गांव वालों से कहा कि वे समतल जमीन वाले पेड़ों को काटने दें लंकिन गांव वालों ने कहा कि वे एक भी पेड़ नहीं काटने देंगे। पेड़ों को काटने का प्रयास हुआ तो वे उनसे चिपक जाएंगे। और पेड़ों से पहले आरे और कुल्हाड़ियां गांव वालों पर चलानी होगी।
गांव वालों का हौसला बढ़ाने के लिए बहुगुणा के सहयोगी धूम सिंह नेगी, लोक कवि घनश्याम शैलानी, कुंवर प्रसून, विजय जड़धारी, दयाल भाई भी वहां पहुंच गए सिल्यारा से सुंदर लाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा भी महिलाओं को लेकर वहां पहुंची। दलब सिंह, पातेराम, वाचस्पति मैठाणी और प्रताप शिखर भी आए।इन लोगों ने लासी के ग्रामीणों के साथ आसपास के 12 गांवों में न जागरण का काम किया। गांव वालों ने ऐलान किया कि जब तक घोंटी से श्रमिक नहीं जाएंगे वे बारी-बारी बारी से रात में भी जंगल की चौकसी करते रहेंगे। 9 दिसंबर से जंगल में ही भागवत कथा की शुरुआत कर दी गयी। भागवत कथा शुरू होते ही जंगल में बड़ी संख्या में उसे सुनने के लिए दूर-दूर से लोग जुटने लगे। ऐसे में वन विभाग को लग गया कि लासी में पेड़ काटना संभव नहीं हो पाएगा। आखिरकार 17 दिसंबर को अपने मजदूरों को लेकर चला गया। लासी का जंगल कटने से बच गया तो पूरे इलाके में इसकी चर्चा होने लगी। यही नहीं ग्रामीणों ने अपने खर्चे पर जगंल की देखभाल के लिए चौकीदार तैनात करने भी शुरू कर दिए।
क्रमशःः जारी
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