मेरे पिता पदमविभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा के परलोक गमन पर हमारे परिवार को दुख की इस घड़ी में साथ देने के लिए आप सभी का हृदय से आभार। शारीरिक रूप से भले ही वे अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपने विचारों में हमेशा जिंदा रहेंगे। उनकी याद में हर व्यक्ति एक पौधा लगाए और प्रकृति संरक्षण का संकल्प ले यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके जन्मदिन 9 जनवरी और पुण्यतिथि 21 मई को पौधे लगाएं। उनकी कर्मस्थली सिल्यारा से पीपल के पौधे रोपकर इसकी शुरुआत कर दी गई है। वहीं पर उनका स्मारक बनाने की भी योजना है।उनका मननना था कि पेड़ पौधे भी इनसान की भावनाओं को महसूस करते हैं। वे पेड़-पौधों को गीत संगीत सुनाने की बात करते और खुद भी पौध रोपण के समय वृक्ष मानव रिचर्ड सेंट बेकर की वृक्षों के लिए गाई प्रार्थना करते थे। आप लोग भी पौध रोपण के समय यह प्रार्थना कर सकते हैं।
स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम कर प्रकृति से कम से कम लेने और उसका ऋण चुकाने की बात करते थे। जो कहते थे उसको अपने जीवन में भी उतारते थे। घटते भूजल के प्रति चेताते हुए उन्होंने पांच दशक से भी पहले चावल खाना इसलिए छोड़ दिया था कि धान का पौधा बहुत ज्यादा पानी लेता है। इसी तरह सेब खाना इसलिए छोड़ दिया था कि इसकी पैकिंग के लिए बड़ी संख्या में पेड़ कटते हैं। कहते थे कि पानी की अपनी जरूरतों को यदि हमने कम नहीं किया और जल संरक्षण की क्षमता वाले पौधों का रोपण और वन संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की नौबत आ सकती है। घटती कृषि भूमि और बढ़ती आबादी को देखते हुए उन्होंने वृक्ष खेती और फाइव एफ ट्री और वह भी चैड़ी पत्ती वाले फूड (भोजन), फाॅडर(चारा),फ्यूल (जलाउ लकड़ी) और फर्टीलाइजर(खाद) पौधे रोपने की सलाह दी। बड़े बांधों को स्थाई समस्या का अस्थाई समाधान करार देते हुए वे कहते थे कि हमें नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को सघन वन से आच्छादित करना होगा। इससे जहां देश को स्थाई रूप से पानी मिल सकेगा वहीं नदियों का बहाव भी नियंत्रित होगा। इसके लिए उनका नारा था धार ऐंच पाणी, ढाल पर डाला बिजली बणावा खला,खाला। यानी रन आफ द रिवर स्कीम से बिजली पैदा कर पहाड़ की चोटी पर पानी पहुंचा कर तीखे पहाड़ी ढालों पर सघन वनीकरण किया जाय।
श्री सुंदर लाल बहुगुणा के शरीर को 21 मई को मुखाग्नि देते उनके पु़त्र |
सुंदर लाल बहुगुणा ने 19 जून 1956 को राजनीति को छोड़कर सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी। इसी दिन उन्होंने सिल्यारा में अपनी जीवन संगिनी विमला नौटियाल से शादी की। झोपड़ी में शुरू की गई पर्वतीय नव जीवन मंडल संस्था गांधी जी के अहिंसा के प्रयोग का केंद्र बनी। यहां से कई गांधीवादी कार्यकर्ता निकले। यहीं से सुंदर लाल बहुगुणा ने पहले अस्पृश्यता निवारण (मंदिर में हरिजन प्रवेश), शराबबंदी और फिर चिपको आंदोलन चलाया। यहीं से उत्तराखंड के कई गांधीवादी कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ। इनमें धूम सिंह नेगी, घनश्याम सैलानी, चंडी प्रसाद भट्ट, धर्मानंद नौटियाल, सुरेंद्र दत्त भट्ट, भवनी भाई, कुंवर प्रसून, विजय जड़धारी, प्रताप शिखर और पांडुरंग हेगड़े प्रमुख हैं। इन्होंने बाद में सुंदर लाल बहुगुणा के साथ और स्वतंत्र रूप से भी कई आंदोलन चलाए। पांडुरंग हेगड़े जो सिल्यारा में एमएसडब्लू का फील्ड वर्क करने आए थे सुंदरलाल बहुगुणा के दर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कर्नाटक में पेड़ों को बचाने का अप्पिको आंदोलन छेड़ दिया। शराबबंदी, चिपको और टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान सुंदरलाल बहुगुणा ने लंबे उपवास भी किए। इनमें टिहरी बांध के खिलाफ 74 दिन का उपवास भी शामिल है। बहुगुणा दंपति ने सिल्यारा आश्रम को गांधीजी के ग्राम स्वराज की प्रयोगशाला बना डाला। तब लड़िकयों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। उन्होंने आश्रम में बालिकाओं के लिए आवसीय स्कूल खोला। इसमें उन्हें पढ़ाई के अलावा सामान्य कामकाज व सिलाई, कताई, बुनाई भी सिखाई जाती थी। यही नहीं वे शाम को गांव में जाकर महिलाओं को भी उनके घरों में जाकर पढ़ाने लगे। महिलाओं के सहयोग से गांव में शराबबंदी भी की।
श्री सुंदर लाल बहुगुणाजी के निधन का समाचार सुना तो अत्यंत दुःख हुआ।
ReplyDeleteबहुगुणाजी बहुत सरल, सौम्य एवं मृदुभाषी व्यक्ति थे। उनका हिंदुस्तान कार्यालय में अक्सर आना-जाना लगा रहता था। उस दौरान उनसे न सिर्फ रू-ब-रू होने एवं चाय-पानी के आतिथ्य का अवसर मिलता बल्कि कई विषयों पर चर्चा भी होती थी।
एक बार की घटना है। तब श्रीमती मृणाल पांडे हिंदुस्तान की प्रधान संपादक थीं और में उनके निजी सचिव के रूप में कार्यरत था। बहुगुणाजी सुबह 11 बजे के करीब आफिस में पहुंच गए, उन्हें मृणालजी से मुलाकात करनी थी। लेकिन मृणालजी अभी आफिस नहीं पहुंची थीं। सो मैने फ़ोन कर उन्हें बहुगुणाजी के आगमन की सूचना दी। मृणालजी ने तत्परता से कहा, उन्हें अपने कमरे में बिठाइए और चाय-पानी पिलवाईए मैं अभी थोड़ी देर मैं पहुंचती हूँ। यह बात अलग है कि बहुगुणाजी मेरे पास ही बैठे हुए थे और पानी पीने के बाद तब चाय ही पी रहे थे। मृणालजी उनका खूब आदर करती थीं, उनसे स्नेह रखती थीं । आफिस पहुंचने के बाद काफी लंबे समय तक उनकी आपस में गुफ्तगू हुई। बहुगुणाजी के निकलने पर वे अपनी सीट से उठकर उन्हें दरवाजे तक अवश्य छोड़ने आतीं।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी सुंदर लाल बहुगुणाजी जैसे कर्मयोगी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।����
प्रकाश भारद्वाज