सुंदर लाल बहुगुणा और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला बहुगुणा |
अपनी यात्राओं के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के फायदों को बारीकी से समझा। उन्होने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधे रखने और जल संरक्षण की क्षमता है। अंग्रेजों के फैलाए चीड़ और इसी से जुड़ी वन विभाग की वनों की परिभाषा ; जंगलों की देन लकड़ी लीसा और व्यापार भी उनके गले नहीं उतरी।
उनका मानना था कि वनों का पहला उपयोग पास रह रहे लोगों के लिए हो। उससे उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खाद्य पदार्थ, घास, लकड़ी और चारा घर के पास ही सुलभ हों। उन्होंने कहा कि वनों की असली देन तो मिट्टी,पानी और हवा है। उनकी इसी सोच से बाद में चिपको आंदोलन के नारे : क्या हैं जंगल के उपकरण, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार का जन्म हुआ।
उन्होंने वन अधिकारों के लिए बड़कोट के तिलाड़ी में शहीद हुए ग्रामीणों के शहादत दिवस 30 मई को वन दिवस के रूप मे मनाने का 30 मई 1967 में निश्चय किया। इसमें अपने सर्वोदयी साथियों के अलावा सभी से शामिल होने की उन्होंने अपील की।
दरअसल 30 मई 1930 को बड़कोट में यमुना नदी के किनारे वन अधिकारों को लेकर बैठक कर रहे ग्रामीणों पर तत्कालीन राजा की फौज ने गोलियां चला दी थीं। जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी, कई लोग जान बचाने को यमुना में कूद गए थे। जिनमें कई बह गए। 80 लोगों को जेल में ठूंस दिया गया था।
1968 में सुंदर लाल बहुगुणा ने इस दिवस को मनाने के लिए पुस्तिका निकाली जिसे नाम दिया गया पर्वतीय क्षेत्र का विकास और वन नीति। इसमें कहा गया था कि वन, कृषि, पशुपालन और कुटीर उद्योग से लोगों को वर्ष भर में कम से कम 300 दिन का रोजगार मिलना चाहिए। 1969 में तिलाड़ी में शहीद स्मारक की स्थापना के साथ ही सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने सर्वोदयी साथियों के साथ वन संरक्षण की शपथ ली। इस बीच सुंदर लाल बहुगुणा 1969 से 1971 तक शराब बंदी के लिए गढ़वाल से लेकर कुमाऊं के बीच दौड़ भाग करते रहे। 1971 के सफल आंदोलन के बाद जब पहाड़ में सरकार ने शराबबंदी लागू कर दी तो बहुगुणा ने वन आंदोलन का बीड़ा उठाया। 11 दिसंबर 1972 को वन व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए 11 दिसंबर को पहला जुलूस बड़कोट के पास पुरोला कस्बे में निकला। इसमें बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने शिरकत की। अगले दिन उत्तरकाशी में विशाल जुलूस निकला। सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में निकले इस जुलूस में जनकवि घनश्याम सैलानी और चंडी प्रसाद भट्ट भी शामिल थे। 13 दिसंबर की सुबह सुंदर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट और धनश्याम सैलानी एक किराए की जीप लेकर गोपेश्वर के लिए निकले। रात में तीनों रुद्रप्रयाग खादी कमीशन के दफ्तर में रुके। यहां घनश्याम सैलानी ने एक गीत लिखा :
इसके बोल थे : खड़ा उठा भै बंधु सब कट्ठा होला
सरकारी नीति से जंगलू बचौला
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..चिपका पेड़ों पर अब न कट्यण द्या
जंगलू की संपत्ति अब न लुट्यण द् या।
घनश्याम सैलानी का यही गीत वन आंदोलन का जागृति गीत बन गया। 15 दिसंबर 1972 को गोपेश्वर के विशाल जुलूस में सैलानी का यह गीत पहली बार गूंजा तो लोगों और फिर चिपको आंदोलन का प्रमुख गीत बन गया।
घनश्याम शैलानी जी प्रर्यावरण आंदोलन में शुरू से ही सक्रिय रहे।
ReplyDeleteAmulya sansmaran
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