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सुंदर लाल बहुगुणा:12ः वनों की नीलामी का विरोध

 सुंदर लाल बहुगुणा:12ः वनों की नीलामी का विरोध


अस्कोट से आराकोट अभियान के जरिए युवाओं के चिपको आंदोलन से जुड़ने से जहां आंदोलन को व्यापक स्वरूप मिला वही आंदोलन का कुमाऊं में भी विस्तार हुआ। आंदोलन से छात्र और युवा बड़ी संख्या में जुड़े। 3 अक्टूबर 1974 को उत्तरकाशी में हो रही वनों की नीलामी के विरोध में सुंदर लाल बहुगुणा अपने सर्वोदयी साथियों के साथ नीलामी हाॅल में घुस गए और इसका विरोध किया। नीलामी नहीं रोके जाने पर वे पास ही के हनुमान मंदिर में उपवास पर बैठ गए। उनका यह उपवास दो हफ्ते तक चला। 

उधर इसी महीने 28 तारीख को नैनीताल के शैले हाॅल में शमशेर सिंह बिष्ट की अगुवाई में छात्र और युवा हाॅल में घुस गए और वनों की नीलामी के विरोध में नारे लगाने लगे। एसडीएम के आदेश पर बिष्ट, गोपाल दत्त पांडे, शेर सिंह धौनी, खड़ग सिंह बोरा, देवेन्द्र सनवाल, बालम सिंह जनोटी, जसवंत सिंह बिष्ट और हरीश रावत समेत 18 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के विरोध में बड़ी संख्या में छात्र थाने पहुंच गए। उधर अल्मोड़ा में छात्रों ने सभी स्कूल-काॅलेज और बाजार बंद करा दिए। व्यापक विरोध के चलते गिरफ्तार आंदोलनकारियों को सात घंटे बाद रिहा कर दिया गया। रिहा होते ही वे फिर से नीलामी रुकवाने के लिए शैले हाॅल पहुंच गए और नीलामी रुकवा दी।

आपातकाल के बाद 1977 में दोबारा वनों की नीलामी हुई तो इसका कोटद्वार, नरेंद्रनगर समेत सभी जगहों पर जमकर विरोध हुआ। 6 अक्टूबर 1977 को नैनीताल के रिंक हाॅल में पेड़ों को कटाने के लिए नीलामी शुरू हुई तो प्रदीप टम्टा, राजीव लोचन शाह, शेखर पाठक, राजा बहुगुणा और निर्मल जोशी जुलूस के साथ नीलामी रुकवाने के लिए चल पड़े। जुलूस के आगे-आगे गिरीश तिवारी गिर्दा हुड़का बजाते हुए चल रहे थे। जुलूस ने नीलामी हाॅल में घुसकर नीलामी रद करावा दी। आदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया तो बड़ी संख्या में लोग मल्लीताल थाने पहुंच गए।

उस समय उत्तर प्रदेश के वन मंत्री नैनीताल के ही रहने वाले थे। उनको यह नागवार गुजरा कि उनके शहर में ही वनों की नीलामी नहीं हो सकी। ऐसे में विभाग ने वनों की नीलामी के लिए दूसरी तारीख 28नवबर रखी। छात्रों और युवाओं ने नीलामी के विरोध में नैनीताल क्लब तक जुलूस निकाला। जुलूस के आगे-आगे गिरीश तिवारी गिर्दा  जागजा जागजा म्यर लोग, नी करन दीयो हमरि नीलामी गाते हुए चल रहे थे।  प्रदर्शनकारी हमला चाहे  जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा जैसे नारे लगा रहे थे। नीलामी हाॅल के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस और पीएसी तैनात थी। प्रदर्शनकारियों पर पहले आंसू गैस के गोले छोड़े गए और फिर लाठीचार्ज किया गया। पुलिस आंदोलन के प्रमुख नेताओं गिरीश तिवारी, हरीश चंद्र, शेखर पाठक, निर्मल जोशी, जीवन सिंह, महेंद्र सिंह,  राजीव लोचन शाह, गोविंद सिंह, राजा बहुगुणा को गिरफ्तार कर ले जाने लगी तो लोग भड़क गए। इसी बीच अल्मोड़ा से शमशेर बिष्ट अपनी टोली के साथ वहां पहुंच गए। उन्होंने आंदोलनकारियों को संबांधित करना चाहा लेकिन पुलिस ने उन्हें नहीं करने दिया। उधर डीएसबी काॅलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष भगीरथ लाल को पुलिस ने सड़क पर घसीट दिया। इससे युवा भड़क गए पुलिस-पीएसी और आदोलनकारियों के बीच हाथपाई होने लगी। पुलिस ने हवा में गोलियां चलाई और दोनों ओर से पथराव शुरू हो गया।  पुलिस और पीएसी ने घरों में घुस कर भी लोगों को लाठियों से पीटा। इसी बीच नैनीताल क्लब में आग लग गई लेकिन मशीनरी आग बुझाने की बजाय वनों की नीलामी करवाती रही।

 अगले दिन 29 नवंबर को नैनीताल में एक सभा का आयोजन किया गया। सभा की अध्यक्षता शमशेर सिंह बिष्ट ने की। सभा में अगिनकांड के लिए सरकार की अदूरदर्शिता को जिम्मेदार ठहराया गया। वन मंत्री से इस्तीफे की मांग की गयी। घटना के विरोध में अल्मोड़ा और रानीखेत के बाजार भी बंद रहे। 1 दिसंबर को भी आमसभा हुई जिसकी अध्यक्षता गिरीश तिवारी ने की। इसमें घटना के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की गयी। नैनीताल में वनों कीनीलामी के विरोध की गूंज पूरे पहाड़ में सुनाई दी और जगहों पर भी नीलामी नहीं होने दी गयीं।

जारी----


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