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Chipko Leader SL Bahuguna speak


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सुंदर लाल बहुगुणा 20: पर्यावरण की रक्षा के लिए कश्मीर से कोहिमा तक पूरे हिमालय को पैदल ही नाप डाला

श्रीनगर से 30 मई 1981 को शुरू हुई 4870 किमी की पदयात्रा कोहिमा में 1 फरवरी 1983 को पूरी हुई चार चरणों में पूरी हुई यात्रा का 2 फरवरी को कोहिमा के राजभवन में पौधे रोपकर हुआ विधिवत समापन हिमालय की लंबी यात्राओं के बाद चिपको बहुगुणा के मन में यह बात गहराई से बैठ गई थी कि आर्थिक फायदे के लिए अत्याधिक पेड़ कटान से हिमालयी क्षेत्र की धरती इस कदर जख्मी हो गयी है कि इसके घावों के भरने तक हरे पेड़ों को काटना बिल्कुल बंद करना होगा। इसके लिए उन्होंने नारा दिया था इकोलजाॅजी इज परमानेंट इकोनाॅमी। बहुगुणा के इस नए दर्शन से सरकारों के अलावा उनके कई साथी भी उनसे नाराज हो गए थे लेकिन धुन के पक्के सुंदर लाल ने इसकी परवाह नहीं की और हिमालय की एक लंबी यात्रा के जरिए अपनी बात आम जन मानस तक पहुंचाने की ठानी। चिपको आंदोलन की गूंज तब तक विदेशों में भी पहुंच गई थी। और पदयात्राओं को माना जाता था चिपको का एक अहम हिस्सा। स्विस समाजशास्त्री गेरहार्ड फिस्टर ने वर्ष 1981 में अपने देशवासियों को बताया था कि चिपको आंदोलन की विशेषता यह है कि पदयात्रा करने वाले लोग अपने दिल की बात कहते हैं। इसलिए लोगों के दिलों तक पहुंचत

हेंवल घाटी से बदली चिपको आंदोलन की दिशा, पीएसी लौटी बैरंग

अदवानी में वनों को बचाने को पहुंचे ग्रामीण   चिपको आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे रिचर्ड सेंट बार्बे बेकर  Click here for english version बहुगुणा ने यहीं दिया क्या हैं जंगल के उपकार मिट्टी  पानी और बयार, नारा वनों को बचाने के लिए हथकड़ी पहन कर पहली बार जेल गए आंदोलनकारी  कुंवर प्रसून ने इजाद किए आंदोलन के नए-नए तरीके, आंदोलन के लिए नारे भी गढ़े वनों को लेकर बहुगुणा के विचारों को हेंवलघाटी में मूर्त रूप मिला। यहां लोग पेड़ों को आरों से बचाने के लिए उन पर न केवल चिपक गए बल्कि पुलिस और पीएसी का सामना करने के साथ ही बाकयदा हथकड़ी पहन कर जेल भी गए। सुदर लाल बहुगुणा ने यहीं नारा दियाः- क्या हैं जंगल के उपकार मिट्टी पानी और बयार।  बहुगुणा की प्रेरणा से धूम सिंह नेगी ने स्थानीय स्तर पर आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया तो कुंवर प्रसून ने आंदोलन केे लिए नए-नए तरीके इजाद किए और नारे गढ़े। आंदोलन में प्रताप शिखर, दयाल भाई, रामराज बडोनी, विजय जड़धारी, सुदेशा देवी, बचनी देवी और सौंपा देवी समेत दर्जनों महिलाओं युवाओं और छात्रों की अहम भूमिका रही। बकौल रामराज बडोनी आंदोलन सुंदर लाल बहुगुणा के मार्गदर्शन में चला

सुंदर लाल बहुगुणा 18: सरकार ने पेड़ काटना नहीं रोका तो पद्मश्री भी ठुकरा दी

नई दिल्ली में इंदिरा गांधी से सहयोगियों के साथ मुलाकात करते बहुगुणा Access the english version here. इंदिरा गांधी के विनम्र आग्रह को भी धुन के पक्के चिपको बहुगुणा ने नहीं माना इंदिरा के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को पेड़ काटने पर लगाना पड़ा पूर्ण प्रतिबंध 26 जनवरी 1981 को पेड़ों को बचाने के चिपको आंदोलन के लिए सुंदर लाल बहुगुणा को पद्मश्री देने की घोषणा हुई। चिपको आंदोलन के बहुगुणा के साथी इससेे खुश थे। लेकिन चिपको बहुगुणा ने हरे पेड़ काटने पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाने पर पद्मश्री लेने से इनकार कर दिया।  धुन के पक्के बहुगुणा ने आंदोलन के प्रति सकारात्म रुख रखने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह को भी विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि धरती हमारी मां है और जब तक हरे पेड़ कटते रहेंगे और धरती मां का लहू मांस  ;मिट्टी, पानीद्ध बहकर जाता रहेगा वे पुरुस्कार  कैसे ले सकते हैं। बाद में इंदिरा गांधी के कड़े रुख के बाद यूपी सरकार को हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना पड़ा। हरे पेड़ों के व्यापारिक कटान पर रोक के आश्वासन के बावजूद तत्कालीन यूपी सरकार ने