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सिल्यारा आश्रम के नजदीकी कस्बे में शराब के खिलाफ सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में हुए सफल आंदोलन के बाद तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने पहाड़ की शराब की दुकानें बंद कर दीं। लेकिन 1971 के नवंबर में अचानक टिहरी में शराब की दुकान खोल दी गई। सुंदर लाल बहुगुणा वहां शराब की दुकान के आगे उपवास पर बैठ गए। उनके सहयोगी घनश्ययाम सैलानी, चंडी प्रसाद भट्ट, धर्मानंद नौटियाल, सुरेंद्र दत्त भट्ट, चिरंजीलाल भट्ट, आनंद सिंह बिष्ट, भवानी भाई गांव-गांव जाकर शराब के खिलाफ आंदोलन के प्रचार में जुट गए। जन कवि धनश्याम सैलानी के गढ़वाली गीत ने जन-जन को झकझोर दिया।
गाने के बोल थे: हिटा दिदी, हिटा भुल्यों चला टिहरी जौला दारू कू भूत लग्यूं तै भूत भगौला।
महिलाएं घर-बार छोड़कर टिहरी के लिए चल पड़ीं। दिन में धरने पर इस कदर भीड़ जुटने लगी कि शराबियों की शराब की दुकान से शराब खरीदने की हिम्मत नहीं होती थी।ऐसे में शराबी दुकान से रात में शराब खरीद कर ले जाने लगे। वे उपवास पर बैठे सुंदर लाल बहुगुणा को अपशब्द भी कहते। इसका पता जब महिलाओं और युवाओं को चला तो उन्होंने भी धरने पर ही दरी डालकर वहां डेरा डाल दिया। युवा शरिबयों की बोतल छीन कर तोड़ने लगे। इससे कई बार तो लड़ाई झगड़ की नौबत तक आ गई। उधर पुरुषों ने घर की महिलाओं को यहां तक कह दिया की धरने पर गईं तो घर के दरवाजे उनके लिए बंद हो जाएंगे। लेकिन शराब को उखाड़ फेंकने का मन बना चुकीं महिलाओं के कदम नहीं रुके। आंदोलन में शहर के संभ्रांत परिवारों की महिलाएं ही नहीं ठेठ दूर दराज के गांवों की महिलाएं भी अपना राशन साथ लेकर धरने पर जुट गईं। इनमें हेमा बहन, सुशीला बहन, कांदबरी देवी प्रमुख थीं। कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर, वाचस्पित मैठाणी समेत सैकड़ों युवा और छात्र भी धरने में बैठने लगे। जाजल से हाईस्कूल के हेडमस्टर धूम सिंह नेगी अपनी नौकरी को दांव पर लगाकर जुलूस लेकर ढोलबाजों के साथ टिहरी पहुंचे। पहले ते टिहरी के पास के अठुर, कोटी और रैका धरमंडल, जाखणीधार के लोग पहुंचे पर धीरे-धीरे आंदोलन कि चिनगारी पूरे टिहरी जिले में फैल गई। हजारों की संख्या में लोग शराब विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए। तब उत्तर प्रदेश में कमलापति त्रिपाठी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। शराब के खिलाफ भड़के आंदोलन को कुचलने के लिए एक रात में धरने से महिला बच्चे युवा सभी को पुलिस ने उठाकर देहरादून और सहारनपुर की जेलों में ठूंस दिया। कहीं इससे आंदोलन न भड़के इसलिए रात में उन्हें ट़कों में इस तेजी से लेजा गया कि रास्ते में सुंदर लाल बहुगुणा की 62 वषींया सास रत्नकांता की हाथ की हड्डी ही एक टहनी से टकराकर टूट गई। अगले दिन गिरफ्तारी की सूचना मिलते हजारों की संख्या में लोग टिहरी उमड़ पड़े। ऐसे में प्रशासन, पुलिस ने आंदोलन के प्रमुख लोगों की सूची बनाकर उन्हें दबिश घरों से गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। भवानी भाई और चंडी प्रसाद भट्ट भूमिगत हो गए। आंदोलकारियों को सामान्य कैदियों की तरह खतरानक कैदियों के साथ बैरकों में ठूंस दिया गया। जेल जाने वालों में सुंदर लाल बहुगुणा का छह साल का बेटा प्रदीप और आनंद सिंह बिष्ट की पत्नी और तीन साल और डेढ़ साल के बच्चे भी शामिल थे। तो सुशीला गैरोला अपने दुधमुंहे बच्चों को छोड़कर ही आंदोलनकारियों के साथ सहारनपुर जेल पहुंच गईं। जेल में विमला बहुगुणा और हेमा बहन के नेतृत्व में महिलाओं ने जेल में भी उपवास शुरू कर दिया। बाद में जेल प्रशासन उन्हें प्रार्थना करने और दिन में बैरक की बजाय जेल बरामदे में रखने पर राजी हुआ तो उपवास टूटा। उधर शराबबंदी आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया। भवानी भाई और चंडी प्रसाद भट्ट को भी पुलिसस ने गिरफ्तार कर लिया। इस बीच भारत और पाकिस्तान की लड़ाई भी शुरू हो गई। हारकर कमलापति सरकार को 14 दिन बाद जेल में बंद सभी आंदोलनकारियों को रिहा करना पड़ा और तय हुआ कि अप्रैल 1972 से पूरे उत्तराखंड में शराबबंदी लागू कर दी जाएगी। उसके बाद उत्तराखंड के पांचों जिलों में शरराब बंदी लागू कर दी गई।
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