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सुंदर लाल बहुगुणा 5: गांधीवादी विचार को लेकर नहीं मानी हार



सिल्यारा आश्रम स्थापना के समय युवा सुंदर लाल बहुगुणा
मीरा बेन के साथ सुंदर लाल बहुगुणा





















सुंदर लाल बहुगुणा 5: गांधीवादी विचार को लेकर नहीं मानी हार
ग्राम स्वराज और स्वाबलंबी गांव के महात्मा गांधी के विचार को धरातल पर उतारने के लिए उनकी अंग्रेज शिष्या मीरा बेन ने वर्ष 1949 में टिहरी के सुदरवर्ती गांव गेंवली में अपना ठिकाना बना लिया। ब्यूरोक्रेसी के तिकड़मों और नेताओं के पाखंड से त्रस्त होकर कुछ ही साल बाद मीरा बेन तो भरत छोड़कर वापस वियाना आष्ट्रिया चली गईं लेकिन सुंदर लाल बहुगुणा ने हार नहीं मानी।सिल्यारा आश्रम में मीरा बेन की शुरुआत को उन्होंने आगे बढ़ाया। वहां गो पालन, खेतीबाड़ी और पनचक्की को आर्थिक स्वाबलंबन का आधार बनाया गया।
 ब्रिटेन के पूर्वा जंगी बेड़े के कमांडर इन चीफ एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी मैडलीन स्लेड महात्मा गांधी के विचार से इस कदर प्रभावित हुई कि अक्तूबर 1925 में देश छोड़कर भारत आ गईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। पहले साबरमती आश्रम और फिर सेवाग्राम में रहकर उन्होंने गांधी दर्शन को पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया। महात्मा गांधी उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे। उसके त्याग को देखकर महात्मा गांधी ने उसे नाम दिया मीरा बेन। मीरा बापू के स्वाधीनता आंदोलन में दो बार जेल भी गईं और वर्ष 1931 में लंदन में राउंड टेबल कांफ्रेंस में भी मीरा बेन गांधी की सहायक के तौर पर शामिल हुईं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद वे उनकी राख को लेकर हरिद्वार और ऋषिकेश आईं। बाद में ऋषिकेश पशुलोक में कुटिया बनाकर रहने लगीं। वर्ष 1948 में प्रजामंडल के प्रचार मंत्री रहते हुए सुंदर लाल बहुगुणा उनसे मिले तो मीरा बेन जमीन पर बैठकर चरखे पर सूत कात रहीं थीं। सुंदर लाल बहुगुणा उनकी सादगी और विचार से बेहद प्रभावित हुए। वेतब 22 साल के और मीरा बेन 56 साल की थीं। मीरा बेन गांधी के ग्रामस्वराज के विचार को धरातल पर उतारने के लिए पशुलोक छोड़कर टिहरी के सुदूरवर्ती गांव गेंवली में आ गईं। यह टिहरी से 26 मील के पैदल फासले पर था।वहां  फारेस्ट से लीज पर  2 एकड़ जमीन लेकर मीरा बेन ने वहां पशु नस्ल सुधार और उन्नत बीजों के जरिए खेतीबाड़ी से आर्थिकी सुधार के प्रयोग शुरू किए। कुटिया का नाम रखा गोपाल आश्रम। वहां से उन्होंने बापू राज पत्रिका का भी प्रकाशन शुरू किया। मीरा बेन ने ग्राम स्वराज के नियम बनाए जिनमें बाहर से काई सहायता न लेना, गांव का अपना शासन और हर व्यक्ति के लिए शरीर श्रम जरूरी था। सुंदर लाल को उन्होंने इस विचार को गांव- गांव फैलाने के अलावा अपने लेखनका अनुवाद और प्रकाशन का जिम्मा सौंपा। मीरा बेन खुद भी घोड़े पर सवार होकर गांधी विचार को फैलाने के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाने लगीं।
उन्होंने गांव वालों को गांव से आरक्षित वन के बीच बांज और चौड़ी पत्ती के पेड़ लगाने को भी कहा जिससे गांव वालों को चारा, लकड़ी के साथ ही स्वच्छ हवा भी मिल सके और भूक्षरण और प्राकृतिक जल स्रोतों को लुप्त होने से रोका जा सके। ग्राम स्वराज की उनकी परियोजना को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकृति दे दी। और उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें इसके लिए बजट भी मिला। वर्ष 195 में गेवली गांव में परियोजना की शुरुआत हुई तो गांव के लोग अपने बनाए वस्त्र पहने कर समारोह में शामिल हुए। लेकिन स्थानीय स्तर पर उन्हें प्रशासनिक सहयोग नहीं  मिल सका।
जिले के अफसरों को मीरा बेन के प्रयोग नहीं भाए। एक वनाधिकारी और एक प्रशासनिक अधिकारी उनके प्रयोग देखने जाते वक्त् खच्चर और घोड़े से गिरकर घायल हो गए। अपेक्षित सहयोग न मिलने पर मीरा बेन अपनी योजना को धरातल पर उतारने के लिए गेंवली से कश्मीर के गाओबल चलीं गईं। वहां उन्होंने इंगलैंड से डेक्सटर नस्ल की गाय और सांड मंगाकर नस्ल सुधार के जरिए पशुपालन को आगे बढ़ाया इसके अचछे परिणाम निकले लेकिन कुछ समय बाद उन्हें वहां भी सरकारी सहयोग मिलना बंद हो गया। मीरा इन दो प्रयोंगों के बाद मीरा बेन को महसूस होने लगा कि सरकार की मदद से स्वाबलंबी ग्राम स्वराज की स्थापना संभव नहीं है। वहां से मीरा बेन टिहरी के चंबा के पास पक्षी कुंज में कुटिया बनाकर रहने लगीं और अंतत: वर्ष 1959 में अपने देश वियाना वापस लौट गईं।
सुंदर लाल बहुगुणा ने सवबलंबन के मीरा बेन के सिद्धांत को अपने सिल्यारा आश्रम से आगे बढ़ाया पर एक बात की गांठ बांध ली कि सरकार से इसमें मदद नहीं लेंगे। सिल्यारा आश्रम में  गो पालन, खेतीबाड़ी, पनचक्की संचालन, करघे पर वस्त्र निर्माण सब कुछ होने लगा। सहायता के नाम पर गांव से जो मिल जाता वही लेते। गांव वाले उन्हें फसल पर अनाज और पशुओं के चारे के लिए पराल दे देते। सिल्यारा आश्रम में पैदा सब्जी और फलों के बदले भी गांव से अनाज और पैसा मिलने लगा। वहां तीन गड्ढों का शौक्चालय और उससे कंपोस्ट निर्माण का कार्य  भी शुरू हुआ। बुनियदी शाला भी शुरू की गई। जिसमें गांव के बच्चों के अलावा सर्वोदयी कार्यकर्ताओं के बच्चों को भी पढ़ाया जाने लगा। चंडी प्रसाद भट्ट के बेटे भुवन, बेटी प्रणीता, मान सिंह जी के बेटे, योगेश बहुगुणा के बेटे विमल समेत कई सर्वोदयी कार्यकर्ताओं के बच्चों ने यहां से वुनियादी शिक्षा ग्रहण की।
गांधीवदी विचार को धरातल पर उतारने के प्रयास में बकौल सुंदर लाल बहुगुणा उन्हें उपेक्षा, अलगाव और उपहास भी मिला लेकिन उनके कदम नहीं रुके।
क्रमश।


 बहुगुणा की डायरी से

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