जो शिल्पकार भगवन की मूर्ति गढ़े मंदिर स्थापना के बाद उसको ही उस मूर्ति के दर्शन करने को न मिले यह बात शिल्पकारों को कचोटती थी। जातीय समानता के लिए ठक्कर बापा छात्रावास की स्थापना के बाद सुंदर लाल बहुगणा शिल्पकारों को मंदिर प्रवेश के अभियान में जुट गए। इस बीच कांग्रेस के दफ्तर से शुरू हुआ ठक्कर बापा छात्रावास का अपना भवन भी बन कर तैयार हो गया था। सुंदर लाल बहुगणा ने इसके लिए भिलंगना से अपनी पीठ पर पत्थर और रेत भी ढोए। छत के लिंटर केलिए दिन भर रोड़ियां भी फोड़ीं। छात्रावास के छात्रों और टिहरी केप्रसिद्व वकील वीरेंद्र दत्त सकलानी समेत कई लोगों ने पत्थर और रेत पहुंचाने के श्रमदान में हिस्सा लिया। लोग काम पर जाते वक्त एक पत्थर या एक कट्टा रेत का छात्रवास निर्माण के लिए छोड़ देते।
दलितों को समानता का अधिकार दिलाने की मुहिम में सुंदरलाल बहुगुणा को हरिजन सेवक संघ का भी सहयोग मिला। इससे कई उत्साही सवर्ण युवक बहुगुणा की मुहिम से जुड़े। टिहरी के बूढ़ाकेदार के सरोला ब्राह्मण धर्मानंद नौटियाल भी उनमें से एक थे। धर्मानंद नौटियाल ने तो दलित भरपुरू नगवाण और बादर सिंह राणा को साथ लेकर संयुक्त परिवार बना डाला। वे तीनों एक ही चूल्हे पर खाना बनाते और खाते। इससे बौखलाए बूढ़ाकेदार के ऊंची जाति के लोगोंने अपने घरोंमें धर्मानंद नौटियाल के प्रवेश पर रोक लगा दी।
हरिजनों के मंदिर में प्रवेश का सिलसिला वर्ष1956 में प्रसिद्ध यमुनोत्री मंदिर से हुआ सुंदर लाल बहुगुणा के साथ धर्मानंद नौटियाल, सुरेंद्र दत्त भट्ट और छात्रावास के कुछ छात्र और स्थानीय प्रगतिशील लोगों ने यमुनोत्री में हरिजनों को मंदिर प्रवेश कराया। इसके बाद गंगोत्री मंदिर में भी हरिजन प्रवेश हुआ। वहां से सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में युवाओं की टोली बूढ़ाकेदार पहुंची। वहां मंदिर प्रवेश का असफल प्रयास परिपूर्णानंद पैन्यूली और भरपुरू नगवाण पहले भी कर चुके थे। तय किया गया कि इस बार मंदिर प्रवेश पूरी रणनीति और गोपनीय ढंग से कराया जाय। इसके लिए 18 अगस्त से 20 अगस्त तक बूढ़ाकेदार में शिविर का आयोजन किया गया। शिविर के अंतिम दिन ऐसे समय में जब पुजारी मंदिर में नहीं थे सुंदर लाल बहुगुणा, अपनी धर्मपत्नी विमला बहुगुणा, धर्मानंद नौटियाल बादर सिंह राणा, मंगलानंद, बालेश्वर, मुंशीलाल, भरपुरू नगवाण के साथ रक्षिया के दलितों की टोली को लेकर बूढ़ाकेदार मंदिर में घुस गए। बहुगुणा खुद मंदिर के दरवाजे पर खड़े हो गए और हरिजनों को उन्होंने अंदर तसल्ली से पूजा करने को कहा। लेकिन मंदिर में दीपक जलाने के लिए माचिस नहीं थी। माचिस के लिए एक युवक को दुकान में भेजा तो गांव में दलितों के मंदिर में प्रवेश की खबर फैल गई। गोविंद सिंह रौतेला समेत कई थोकदार और ब्राह्मण वहां पहुंच गए। उन्होंने मंदिर में पूजा कर रहे शिल्पकारों को तत्काल बाहर निकलने को कहा। जब वे बाहर नहीं आए तो वे मंदिर में घुसने का प्रयास करने लगे। दरवाजे पर सुंदर लाल बहुगुणा चट्टान की तरह खड़े थे उन्होने उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया तो गोविंद सिंह और उनके साथ आई भीड़ ने उनके साथ मारपीट शुरू कर दी। उन्हें चप्पलों से पीटा गया। पति को बचाने विमला बहगुणा आईं तो उन्हें भी चप्पलों से पीटा गया। बहुगुणा लहूलुहान हो गए। बाद में साथ के युवाओं ने सुंदर लाल बहुगणा से मारपीट करने वालों पर केस दर्ज करने की बात की लेकिन सुंदर लाल बहुगुणा ने मना कर दिया लेकिन फिर भी कुछ युवाओं ने केस दर्ज करा दिया। सुंदर लाल बहुगुणा को जब इसका पता चला तो उन्होंने युवाओं से बैर भुलाने की बात करते हुए दोनों पक्षों में समझौता करवा दिया।
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