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सुंदर लाल बहुगुणा 4

दलित मंदिर प्रवेश के बाद डोला पालकी से शादी
वर्ष 1956 में यमुनोत्री गंगोत्री और बूढ़ाकेदार मंदिर में शिल्पकारों के प्रवेश के बाद भी सुंदर लाल बहुगुणा ने जातीय समानता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी। उस समय आम तो आम धनी शिल्पकारों के लिए भी धूमधाम से शादी-ब्याह और समारोह आयोजित करना एक स्वप्न ही था।यहां तक खस जाति के लोग भी डोला पालकी के साथ धूमधाम से बारात नहीं ले जा सकते थे। ऐसे में 1961 में जातीय समानता के लिए हरिजन सेवक संघ और सुंदर लाल बहुगुणा से जुड़े बूढ़ाकेदार के भरपुरू नगवाण ने अपने पुत्र बिहारी लाल की शादी डोला पालकी के साथ करवाने की इच्छा जताई। उससे पहले दो बार ऐसे प्रयासों का सवर्णों ने हिंसक विरोध किया था। टिहरी जिले के पंगराणा हिंदांव में तो पालकी में बैठकर आए दूल्हे को बंधक बना लिया गया था । पूरे 21 दिन तक शिल्पकारों की बारात दूल्हे के साथ गांव में ही रोककर रखी गई। बाद में प्रशासन ने गांव के 700 सवर्णों पर केस दर्ज उन्हें मुक्त कराया।
सुंदर लाल बहुगुणा ने ठक्कर बापा छात्रावास टिहरी में बिहारीलाल की शादी की योजना बनाई। जिस गांव बडियार में बिहारी लाल की शादी तय हुई वह हिंदाव पट्टी के उसी पंगराणा गांव के बगल में था जहां शिल्पकारों की बारात रोकी गयी थी। सुंदर लाल बहुगुणा ने भरपुरू नगवाण के समक्ष शर्त रखी कि वे बिहरी लाल की शादी डोला पालकी के साथ कराएंगे लेकिन इसमें पुलिस प्रशासन की मदद नहीं नहीं ली जाएगी। और न ही मुकदमेबाजी और प्रतिकार होगा। बारात को जहां भी रोका जाएगा बाराती वहीं सत्याग्रह पर बैठ जाएंगे। बारात में वही जाएगा जो मार खाने और भूखा रहने को तैयार हो। अंतत: दशहरे के दिन 1961 को थाती बूढ़ाकेदार से बारात ढोल बाजे और रणसिंघा के साथ पैदल बडियार के लिए रवाना हुई। बारातियों में सुंदर लाल बहुगुणा के अलावा उनके सहयोगी चंडी प्रसाद भट्ट, चिरंजी लाल भट्ट, धर्मानंद नौटियाल, बादर सिंह राणा, इंद्रमणि बडोनी समेत लगभग 200 बाराती थे। विनयखाल और बासर से होती हुई मास्टर तेजराम के घर पहुंची। तीसरे दिन फेर भंवरों के बाद बिहारी लाल अपनी विवाहिता सुमन को डोली मे बिठाकर बारातियों के साथ अपने गांव थाती रवाना हुए। यह डोला पालकी के साथ शिल्पकारों की ऐसी पहली शादी थी जिसमें सवर्णों के साथ न तो मुकदमेबाजी हुई और न मारपीट।

जारी........सुंदर लाल बहुगुणा 4

दलित मंदिर प्रवेश के बाद डोला पालकी से शादी
वर्ष 1956 में यमुनोत्री गंगोत्री और बूढ़ाकेदार मंदिर में शिल्पकारों के प्रवेश के बाद भी सुंदर लाल बहुगुणा ने जातीय समानता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी। उस समय आम तो आम धनी शिल्पकारों के लिए भी धूमधाम से शादी-ब्याह और समारोह आयोजित करना एक स्वप्न ही था।यहां तक खस जाति के लोग भी डोला पालकी के साथ धूमधाम से बारात नहीं ले जा सकते थे। ऐसे में 1961 में जातीय समानता के लिए हरिजन सेवक संघ और सुंदर लाल बहुगुणा से जुड़े बूढ़ाकेदार के भरपुरू नगवाण ने अपने पुत्र बिहारी लाल की शादी डोला पालकी के साथ करवाने की इच्छा जताई। उससे पहले दो बार ऐसे प्रयासों का सवर्णों ने हिंसक विरोध किया था। टिहरी जिले के पंगराणा हिंदांव में तो पालकी में बैठकर आए दूल्हे को बंधक बना लिया गया था । पूरे 21 दिन तक शिल्पकारों की बारात दूल्हे के साथ गांव में ही रोककर रखी गई। बाद में प्रशासन ने गांव के 700 सवर्णों पर केस दर्ज उन्हें मुक्त कराया।
सुंदर लाल बहुगुणा ने ठक्कर बापा छात्रावास टिहरी में बिहारीलाल की शादी की योजना बनाई। जिस गांव बडियार में बिहारी लाल की शादी तय हुई वह हिंदाव पट्टी के उसी पंगराणा गांव के बगल में था जहां शिल्पकारों की बारात रोकी गयी थी। सुंदर लाल बहुगुणा ने भरपुरू नगवाण के समक्ष शर्त रखी कि वे बिहरी लाल की शादी डोला पालकी के साथ कराएंगे लेकिन इसमें पुलिस प्रशासन की मदद नहीं नहीं ली जाएगी। और न ही मुकदमेबाजी और प्रतिकार होगा। बारात को जहां भी रोका जाएगा बाराती वहीं सत्याग्रह पर बैठ जाएंगे। बारात में वही जाएगा जो मार खाने और भूखा रहने को तैयार हो। अंतत: दशहरे के दिन 1961 को थाती बूढ़ाकेदार से बारात ढोल बाजे और रणसिंघा के साथ पैदल बडियार के लिए रवाना हुई। बारातियों में सुंदर लाल बहुगुणा के अलावा उनके सहयोगी चंडी प्रसाद भट्ट, चिरंजी लाल भट्ट, धर्मानंद नौटियाल, बादर सिंह राणा, इंद्रमणि बडोनी समेत लगभग 200 बाराती थे। विनयखाल और बासर से होती हुई मास्टर तेजराम के घर पहुंची। तीसरे दिन फेर भंवरों के बाद बिहारी लाल अपनी विवाहिता सुमन को डोली मे बिठाकर बारातियों के साथ अपने गांव थाती रवाना हुए। यह डोला पालकी के साथ शिल्पकारों की ऐसी पहली शादी थी जिसमें सवर्णों के साथ न तो मुकदमेबाजी हुई और न मारपीट।

जारी........

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