टिहरी राजशाही के खिलाफ श्रीदेव सुमन की लड़ाई को लाहौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी रियासत में कांग्रेस के पदाधिकारी के रूप में आगे बढ़ाया। इस बीच 11 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को राजशाही द्वारा की गई हत्या से फैली विद्रोह की चिनगारी ने 14 जनवरी 1948 राजशाही का तख्ता पलट दिया। कीर्तिनगर से दोनों शहीदों के शवों को लेकर अपार जनसमूह टिहरी के लिए बढ़ चला। टिहरी के कोने-कोने से जनता भी 14 जनवरी को मकरैण के लिए साथ में दाल चावल लेकर टिहरी पहुंची। जनता में राजशाही के खिलाफ इतना आक्रोश था कि राजतंत्र के लोगों की जान बचाने को टिहरी जेल में बंद करना पड़ा। उसी दिन राजशाही का आखिरी दिन था। प्रजामंडल की सरकार बन गई। तब सुंदर लाल बहुगुणा प्रजामंडल के मंत्री थे लेकिन वे सरकार में शामिल होने की बजाय कांग्रेस के महामंत्री बने। वे घंटाघर के पास कांग्रेस के दफ्तर में रहते थे। तब शराब का प्रकोप जोरों पर था। सबसे खराब स्थिति टिहरी शहर की दलित बस्ती की थी। यहां के पुरुष शराब के नशे में रात में अपने परिवार के साथ गालीगलौज और मारपीट करते थे। इसस...
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