खुरेत में पेड़ काटने आए ठेकेदार ने मदद के लिए बुलाई पुलिस
गांव में पीने के पानी की समस्या उठा कर ग्रामीणों को आंदोलन से जोड़ा
आंदोलन के बाद लंबे समय से प्यासे खुरेत के ग्रामीणों को मिला पीने का पानी
हेंवल नदी के उद्गम खुरेत के जंगल से हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने पहले छात्रों का सहारा लिया लेकिन वानर सेना ने ऐसा उत्पात मचाया कि दो दिन बाद ही बहुगुणा ने उन्हें नमस्ते कह दिया। बाद में अपने समर्पित साथियों के सहयोग से खुरेत गांव की पीने के पानी की समस्या के माध्यम से उन्होंने आंदोलन में गांव वालों को जोड़ा और जंगल कटने से बचा लिया।
बडियारगढ़ में चीड़ के हरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 24 दिन के उपवास के बाद सुंदर लाल बहुगुणा को राम नरेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध का आश्वासन दिया था। लेकिन पहले लासी और फिर खुरेत में चीड़ के हरे पेड़ काटने ठेकेदार के मजदूर पहुंच गए। बहुगुणा ने स्थानीय लोगों और अपने समर्पित साथियों के सहयोग से दोनों ही जगहों पर पेड़ कटने से बचाए। इस बीच सरकारें बदलीं और राज्य और कंेद्र के मुखिया भी। ऐसे में पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन और सुंदर लाल बहुगुणा के प्रति उनका नजरिया भी बदला। उत्तर प्रदेश में बनारसी दास मुख्यमंत्री तो केंद्र में चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। पेड़ उन्हें फिर राजस्व कमाने का अहम जरिया लगने लगे।
खुरेत में ठेकेदार नेपाली मजदूरों को लेकर चीड़ के पेड़ काटने पहुंच गया। 21 दिसंबर 1979 को सुंदर लाल बहुगुणा, विशेश्वर दत्त सकलानी और चतर सिंह नकोटी के साथ खुरेत गांव पहुंचे उन्होंने ग्रामीणों से पेड़ कटने से बचाने में सहयोग मांगा लेकिन गांव वालों का कहना था कि चीड़ के पेड़ कटने से तो उन्हें फायदा ही है। उनकी पत्तियों और छाया से खेत बर्बाद हो रहे हैं। रही सही कसर उन पेड़ों के सहारे बंदर फसल तबाह कर पूरी कर देते हैं। गांव वालों का रुख देखकर बहुगुणा ने छात्रों का सहयोग लेने की ठानी। वे विशेश्वर दत्त सकलानी के साथ रात को उनके गांव पुजार गांव चले गए। 22 दिसंबर को वे सुबह प्रार्थना के समय पुजार गांव इंटर कॉलेज पहुंचे। वहां छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने पेड़ों को कटने से बचाने की अपील की और छात्रों से नारे लगवाये-
“क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार“
“भले कुल्हाड़े चमकेंगे, हम पेड़ों पर चिपकेंगे, पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ कटेंगे“
प्रार्थना के बाद बहुगुणा सकलानी के साथ पेड़ कटने से बचाने के लिए खुरेत चले गए। उधर प्रधानाचार्य ने छात्रों को चेताया कि वे बोर्ड की परीक्षा के लिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें और नेताओं के चक्कर में न पड़ें लेकिन 12वीं के छात्र सोमवारी लाल सकलानी को बहुगुणा की बातों ने बहुत प्रभावित किया। वह मॉनीटर भी था। उसने अपने साथियों वीर सिंह, परेंद्र के साथ पेड़ कटने से बचाने में बहुगुणा का साथ देने का निश्चय किया और छुट्टी के बाद छात्रों से खुरेत पहुंचने को कहा। उनके साथ 60-70 छात्र खुरेत के जंगल पहुंच गए। छात्रों ने वहां “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार“
“भले कुल्हाड़े चमकेंगे, हम पेड़ों पर चिपकेंगे, पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ कटेंगे“ नारे लगाए। यही नहीं छात्रों ने वहां मजदूरों को डराने के लिए उनका सामान इधर-उधर फेंक दिया। खाने के लिए रखा उनका चना-लैंची भी कुछ खाया और कुछ बिखेर दिया। बकौल सोमवारी लाल, बहुगुणा ने इसका विरोध किया और छात्रों से ऐसा न करने को कहा। बरहाल मजदूरों ने डर कर पेड़ काटना बंद कर दिया। उसके बाद फिर पेड ़नहीं कट पाए। जुलूस के पहुंचने तक वहां काफी पेड़ कट चुके थे। रात होने पर छात्र अपने घरों को चले गए और सोमवारी लाल अपने साथी परेंद्र के साथ उसके घर खुरेत चला गया। बहुगुणा अपने साथियों के साथ निगरानी के लिए वहीं जंगल में ही रहे। ठेेकेदार का एजेंट भी पंप हाउस में जल संस्थान के कर्मचारी के साथ रहने चला गया। अगले दिन ठेकेदार के आदमी के साथ फारेस्ट गार्ड पंप आपरेटर को लेकर पुलिस में रिपोर्ट लिखाने चला गया कि सुंदर लाल बहुगुणा और उनके सथियों ने उनके साथ मारपीट की और चोरी की। पुलिस जांच को आई लेकिन आरोप झूठे निकले।
23 दिसंबर को हेंवल घाटी से बहुगुणा के सहयोगी धूम सिंह नेगी, कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर, विजय जड़धारी वहां पहुंच गए। बकौल सोमवारी लाल उनके आते ही बहुगुणा जी खुश हो गए उन्होंने नेगी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अब हमारे हनुमान आ गए हैं अब कोई चिंता नहीं है। सोमवारी लाल उस रात उन लोगों के साथ ही रहा। रात में पंप के कर्मचारी और उसके साथ रह रहे शराब के नशे में चूर फारेस्ट गार्ड से उनकी बहस भी हुई। छा़त्रों का उग्र रूप देखकर बहुगुणा ने सहयोग के लिए छात्रों का आभार जताते हुए कहा कि वे अब बोर्ड परीक्षा के लिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें जब जरूरत होगी तो उन्हें बुला लेंगे।
छात्रों की विदाई के बाद बहुगुणा के हेंवल घाटी से आए साथियों ने आंदोलन का मोर्चा संभाल लिया। बडियार गढ़ की तरह ही लोगों को आंदोलन से जोड़ने के लिए वे हर घर से एक-एक रोटी मांगने लगे। गांव के पंचायती घर में उन्होंने डेरा डाल दिया। उधर लासी के आंदोलन मे प्रमुख भूमिका निभाने वाले कुंवर सिंह, साब सिंह और दयाल भाई भी वहां पहुंच गए। गांव के पूरण सिंह नेगी के घर में आंदोलनकारियों को पनाह मिली। उनके परिवार वालों ने घर का एक कमरा आंदोलनकारियों को दे दिया। यही नहीं वे उनको खाना बनाकर भी देने लगे। लेकिन आंदोलनकारियों ने उन्हें समझाया कि हर घर से एक रोटी मांगने का उनका मकसद लोगों को आंदोलन से जोड़ना है। पूरण सिंह नेगी खुद वन विभाग में दूसरी जगह रेंजर के पद पर तैनात थे। उनकी लड़की रंजना ने आंदोलनकारियों को समझाया कि चीड़ के पेड़ के नाम पर उन्हें गांव का सहयोग शायद ही मिले पर यदि वे गांव के पीने के पानी की समस्या को भी आंदोलन में जोड़ें तो बात बन सकती है। रंजना ने बताया कि यहां ंहेंवल नदी से पानी पंप कर चंबा जाता है लेकिन गांव के लोग खुद प्यासे हैं।
रंजना की बात आंदोलनकारियांे की समझ में आ गयी। 27 दिसंबर को गांव में वन एवं जल सुरक्षा समिति का गठन किया गया। इसका संयोजक बलबीर सिंह नेगी को बनाया गया। समिति ने ऐलान किया कि यदि 15 जनवरी तक गांव में पानी नहीं पहुंचाया जाता तो वे चंबा पानी नहीं जाने देंगे और पानी का रुख गांव की तरफ मोड़ देंगे। अगले दिन इसी मांग को लेकर खुरेत गांव से काणाताल तक जुलूस निकाला गया। जुलूस में पांच साल के जगमोहन (बॉबी) से लेकर 75 वर्षीय पूर्णानंद भट्ट तक शामिल थे। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे-
“यह कैसी इन्साफी है, जल में मछली प्यासी है, अब न कोई पेड़ कटेगा, नहीं लुटेगा पानी, जब तक प्यासा गांव रहेगा देंगे हम कुर्बानी“ 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन गांव के राम प्रसाद के सहयोग से आंदोलनकारियों ने फिर हर घर से चावल और दाल इकट्ठा की और सामूहिक रूप से खिचड़ी का त्योहार मनाया।
पेड़ बचाने के आंदोलन में खुरेत गांव के पानी का मुद्दा जोड़ने से आंदोलन को गांव वालों का समर्थन भी मिलने लगा। महिलाएं भी आंदोलन से जुड़ने लगीं। 21 जनवरी को 1980 को सरजू देवी की अगुवाई में महिलाओं की बैठक हुई। इसमें गांव में सफाई और शराब के खिलाफ भी आंदोलन चलाने का निर्णय हुआ। आसपास के सनगांव, पुजाल्डी, जड़ीपानी और सौड़ आदि गांवों के लोग भी आंदोलन से जुड़ गए। 23 जनवरी को बड़ी संख्या में लोग भंगलियाणा पंप हाउस तक गए और पंप हाउस को जाने वाला पानी गांव की तरफ मोड़ दिया। इससे घंटे भर तक एक बूंद भी पानी पंप होकर चंबा नहीं जा सका। जल संस्थान के आपरेटर ने एक बार फिर आंदोलनकारियों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी।
प्रदर्शनकारियों ने तय किया कि वे पानी रोकने का अपना अपराध स्वीकार करते हुए जेल भरो आंदोलन चलाएंगे। गिरफ्तारी की लिए सूची तैयार की जाने लगी। लेकिन 25 जनवरी को पुुलिस की बजाय जल संस्थान के अधिशासी अभियंता खुरेत गांव आए। उन्होंने गांव वालों को लिखित आश्वासन दिया कि तीन महीने के भीतर गांव में पीने का पानी पहुंचा दिया जाएगा। इससे आंदोलन में शामिल गांव वालों का मनोल बढ़ा। उन्होंने कहा कि वे आंदोलन से पहले कट चुके पेड़ों की लकड़ी भी लुढ़कान कर नदी के सहारे नहीं ले जाने देंगे क्यांेकि इससे भूस्खलन और रेड़े रवाड़े आते हैं। 20 सितंबर को भूस्खलन और हेंवल नदी में बाढ़ आने से भारी नुकसान हुआ था। बहेड़ा, नागणी और जड़धर गांव के लोगों ने भी प्रशासन को ज्ञापन देकर नदी के सहारे स्लीपर ले जाने का विरोध किया। उधर इस बीच खुरेत गांव में किनगोड़े की जड़ निकालने पहुंचे ठेकेदार और उसके मजदूरों को भी गांववालों ने खदेड़ ़दिया।
ग्रामीणों के आंदोलन से खुरेत में जंगल कटने से तो बच ही गया। चार महीने बाद गांव में पीने का पानी भी पहुंच गया। लंबे समय से पीने के पानी को तरस रहे ग्रामीणों ने इसके लिए सुंदर लाल बहुगुणा और उनके सहयोगियों का आभार जताया और भविष्य में भी पेड़ बचाने का संकल्प लिया। और इस तरह आंदोलन का सुखद अंत हुआ। बाद में बहुगुणा के प्रमुख सहयोगी कुंवर प्रसून का गांव से आंदोलन की प्रमुख स्तंभ रहीं रंजना नेगी से विवाह हुआ।
क्रमशः
Real and excellent post.Thanks Pradeep Bahuguna.
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