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Tribute to Shri. Sunder Lal Bahuguna: Gandhi of the environment. Session 3

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सुंदर लाल बहुगुणा 9: इस तरह हुआ चिपको आंदोलन का उदय

Click here to access english version सुंदर लाल बहुगुणा  और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला बहुगुणा अपनी यात्राओं के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के फायदों को बारीकी से समझा। उन्होने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधे रखने और जल संरक्षण की  क्षमता है। अंग्रेजों के फैलाए चीड़ और इसी से जुड़ी वन विभाग की वनों की परिभाषा ; जंगलों की देन लकड़ी लीसा और व्यापार भी उनके गले नहीं उतरी। उनका मानना था कि वनों का पहला उपयोग पास रह रहे लोगों के लिए हो। उससे उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खाद्य पदार्थ, घास, लकड़ी और चारा घर के पास ही सुलभ हों। उन्होंने कहा कि वनों की असली देन तो मिट्टी,पानी और हवा है। उनकी इसी सोच से बाद में चिपको आंदोलन के नारे : क्या हैं जंगल के उपकरण, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार का जन्म हुआ।   उन्होंने वन अधिकारों के लिए बड़कोट के तिलाड़ी में शहीद हुए ग्रामीणों के शहादत दिवस 30 मई को वन दिवस के रूप मे मनाने का 30 मई 1967 में निश्चय किया। इसमें अपने सर्वोदयी साथियों के अलावा सभी से शामिल होने की उन्होंने ...

सुंदर लाल बहुगुणा 23: हिमालय से दक्षिण पहुंचा पेड़ बचाने का आंदोलन

समाजसेवा का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने आए पांडुरंग बने बहुगुणा के शार्गिद  पांडुरंग ने आंदोलन छेड़ सरकार को वन नीति बदलने को किया मजबूर   उत्तराखंड और हिमाचल के बाद हरे पेड़ों को बचाने का आंदोलन दक्षिण भारत के कर्नाटक में भी शुरू हो गया। पांडुरंग हेगड़े के नेतृत्व में सिरसी के ग्रामीण पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उनसे चिपक गए। कन्नड़ में आंदोलन को नाम दिया गया अप्पिको। आंदोलन का असर इतना व्यापक था कि सरकार को हरे पेड़ों के कटान पर रोक के साथ ही अपनी वन नीति में बदलाव को भी मजबूर होना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय से 80 के दशक में बहुगुणा से समाजसेवा का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने आए एमएसडब्लू के होनहार छात्र पांडुरंग, बहुगुणा से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने नौकरी की बजाय अपना जीवन भी उनकी तरह ही प्रकृति संरक्षण के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लिया। पांडुरंग पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाने के लिए बहुगुणा की कश्मीर-कोहिमा पदयात्रा में शामिल हुए। यात्रा के बाद पांडुरंग ने बहुगुणा को अपने यहां आने का न्योता भेजा। बताया कि उनके यहां भी सरकार व्यापारिक प्रजाति के पेड़ पनपाने क...

सुंदर लाल बहुगुणा 2 - जातीय भेदभाव मिटाने की लड़ाई से हुई शुरुआत

अंग्रेजी वर्जन के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://bahugunap.blogspot.com/2025/07/sunder-lal-bahuguna-2-fight-against.html टिहरी राजशाही के खिलाफ श्रीदेव सुमन की लड़ाई को लाहौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी रियासत में कांग्रेस के पदाधिकारी के रूप में आगे बढ़ाया। इस बीच 11 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को राजशाही द्वारा की गई हत्या से फैली विद्रोह की चिनगारी ने 14 जनवरी 1948 राजशाही का तख्ता पलट दिया। कीर्तिनगर से दोनों शहीदों के शवों को लेकर अपार जनसमूह टिहरी के लिए बढ़ चला। टिहरी के कोने-कोने से जनता  भी 14 जनवरी को मकरैण के लिए साथ में दाल  चावल लेकर  टिहरी पहुंची। जनता में राजशाही के खिलाफ इतना आक्रोश था कि राजतंत्र के लोगों की जान बचाने को टिहरी जेल में बंद करना पड़ा। उसी दिन राजशाही का आखिरी दिन था। प्रजामंडल की सरकार बन गई। तब सुंदर लाल बहुगुणा प्रजामंडल के मंत्री थे लेकिन वे सरकार में शामिल होने की बजाय कांग्रेस के महामंत्री बने। वे घंटाघर के पास कांग्रेस के दफ्तर में रहते थे। तब शराब का प्रकोप जोरों पर था। सबसे खराब स्...