Click here to access english version सुंदर लाल बहुगुणा और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला बहुगुणा अपनी यात्राओं के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के फायदों को बारीकी से समझा। उन्होने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधे रखने और जल संरक्षण की क्षमता है। अंग्रेजों के फैलाए चीड़ और इसी से जुड़ी वन विभाग की वनों की परिभाषा ; जंगलों की देन लकड़ी लीसा और व्यापार भी उनके गले नहीं उतरी। उनका मानना था कि वनों का पहला उपयोग पास रह रहे लोगों के लिए हो। उससे उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खाद्य पदार्थ, घास, लकड़ी और चारा घर के पास ही सुलभ हों। उन्होंने कहा कि वनों की असली देन तो मिट्टी,पानी और हवा है। उनकी इसी सोच से बाद में चिपको आंदोलन के नारे : क्या हैं जंगल के उपकरण, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार का जन्म हुआ। उन्होंने वन अधिकारों के लिए बड़कोट के तिलाड़ी में शहीद हुए ग्रामीणों के शहादत दिवस 30 मई को वन दिवस के रूप मे मनाने का 30 मई 1967 में निश्चय किया। इसमें अपने सर्वोदयी साथियों के अलावा सभी से शामिल होने की उन्होंने ...
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