Skip to main content

सुंदर लाल बहुगुणा: 11 अस्कोट से आराकोट अभियान से युवाओं को जोड़ा

 


यात्रा के पदयात्री: शमशेर बिष्ट, प्रताप शिखर, शेखर पाठक और कुंवर प्रसून


सुंदर लाल बहुगुणा: 11  अस्कोट से आराकोट अभियान से युवाओं को जोड़ा

शराबबंदी आंदोलन की सफलता के बाद 1973 में हुए चिपको आंदोलन को व्यापक स्वरूप देने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने युवाओं को कुमाऊं के अस्कोट से गढ़वाल के आराकोट तक की यात्रा के माध्यम से जोड़ा। 700 किमी की यात्रा 44 दिन में पूरी हुई। यात्रा की शुरुआत के लिए टिहरी को राजशाही की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए शहीद हुए अमर शहीद श्रीदेव सुमन के जन्मदिन 25 मई को चुना गया।

अस्कोट- आराकोट अभियान में कुमाऊं से शेखर पाठक और शमशेर सिंह बिष्ट और गढ़वाल से प्रताप शिखर, कुंवर प्रसून और विजय जड़धारी इसमें शामिल हुए। ये सभी छात्र थे। बीच- बीच में कुछ और युवा भी यात्रा में शामिल हुए। यात्रा का विषय रखा गया वन संरक्षण, शराबबंदी, स्त्री शक्ति जागरण और युवा पलायन रोकना। 25 मई 1974 को पिथौरागढ़ के अस्कोट से यात्रा की शुरुआत हुई। तय हुआ कि जन सहयोग से ही यात्रा चलेगी और यात्री गांवों में रुक कर सभाओं के माध्यम से लोगों के साथ वन संरक्षण, शराबबंदी, स्त्री शक्ति जागरण और युवा पलायन रोकने पर चर्चा करेंगे और उनकी मुख्य समस्याओं की भी जानकारी लेंगे। तय हुआ कि यात्री जेब में एक भी पैसा नहीं रखेंगे और भोजन, रत्रि विश्राम और अन्य जरूरतों के लिए पड़ावों मे पड़ने वाले ग्रामीणों पर ही निर्भर रहेंगे। जिससे उनके जीवन को गहराई से समझा जा सके। 

 अस्कोट-आराकोट अभियान के एक पदयात्री प्रताप शिखर ने इस यात्रा के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए बताया था कि मुन्स्यारी के रास्ते में कौवाधार में हमने चाय पी ली। सुन्दरलाल बहुगुणा ने हमें चाय पीते देख लिया था। मुनस्यारी पहुँच कर उन्होंने हम से साहित्य बिक्री का हिसाब माँगा। हिसाब में 25 पैसे कम निकलने पर उन्होंने कहा कि यह मत भूलो कि सार्वजनिक जीवन में तीन बातों का विशेष ध्यान रखना होता है, धन का सदुपयोग, समय की पाबन्दी और चरित्र की मजबूती। 

पदयात्री रास्ते में पड़ने वाले गांवों के लोगों को समझाते की हम नेचर के स्वामी नहीं दोस्त हैं। वन हमें हवा, पानी और मिट्टी देते हैं। उन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए हमें बचाकर रखना है। अपने आसपास ऐसे पेड़ पौधे लगाने हैं जिनसे वातावरण प्रदूषण मुक्त रहे और हमें अपने घर के पास ही अपनी जरूरतों के लिए लकड़ी, घास, रेशा, पानी और खाद्य सामग्री मिल सके। वे तर्क देते कि अलकनंदा में 1970 आई विनाशकारी बाढ़ बड़ी मात्रा में काटे गए पेड़ों का ही दुष्परिणाम था। साथ ही ग्रामीणों को यह भी समझाते कि वन का मतलब चीड़ नहीं है। इसे तो अंग्रेजों ने पैसा कमाने के लिए फैलाया और अब वन विभाग वही काम कर रहा हैै। उन्होंने हमारे नेचुरल वन को चीड़ के वनों में तब्दील कर दिया है। व्यापारिक पेड़ों को पनपाने के लिए विदेशों से भी सहायता मिलती है। क्योकि उन्हें कच्चा माल चाहिए। यही वजह है कि पारंपरिक पेड़ों की बजाय आज खेतों की मेड़ तक यूकेलिप्टस और पौपुलर पहुंच गए हैं जो धरती का पानी सोख लेते हैं और उसे बंजर बना देते हैं।

 बहुगुणा कहने लगे कि हमें नेचर से अपनी न्यूनतम जरूरतों भर को लेना है उसके साथ कसाई जैसा व्यवहार नहीँ करना। बहुगुणा ने सेब खाना इस तर्क के साथ छोड दिया कि सेब की पैकिंग के लिए पेटियां बनाने के लिए बडी संख्या में पेड काटे जाते हैं। चावल खाना भी यह कहकर छोड़ दिया कि धान की फसल के लिए बहुत पानी चाहिए। उनका तर्क था कि भूजल लगातार घटता जा रहा है। ऐसे में हमें अपनी पानी की जरूरतें कम करनी हैं और उसका दुरुपयोग तो कतई नहीीँ करना ।  वह कहते हम नहींं चेते तो तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा।

बहुगणा के साथ उनके युवा सहयात्री भी धीरे-धीरे ग्रामीणों को यही सब समझाने लगे। साथ में इससे संबंधित किताबें भी वे ग्रामीणों को बेचते। वे जनकवि घनश्याम सैलानी का गीत भी गाकर सुनाते।

गीत के बोल थे- खड़ा उठा भै, बंधु सब कठ्ठा होला

सरकारी नीति से जंगलू बचैला। 

ठेकेदारी प्रथा से जंगल कटीगे

बुरा ऐगी समा काल बरखा हटीग। 

............................................

...चिपका पेड़ों पर अब न कटेण द्या

जंगलू की संपत्ति अब न लुटेण द्या।


Comments

Popular posts from this blog

सुंदर लाल बहुगुणा 2 - जातीय भेदभाव मिटाने की लड़ाई से हुई शुरुआत

टिहरी राजशाही के खिलाफ श्रीदेव सुमन की लड़ाई को लाहौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी रियासत में कांग्रेस के पदाधिकारी के रूप में आगे बढ़ाया। इस बीच 11 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को राजशाही द्वारा की गई हत्या से फैली विद्रोह की चिनगारी ने 14 जनवरी 1948 राजशाही का तख्ता पलट दिया। कीर्तिनगर से दोनों शहीदों के शवों को लेकर अपार जनसमूह टिहरी के लिए बढ़ चला। टिहरी के कोने-कोने से जनता  भी 14 जनवरी को मकरैण के लिए साथ में दाल  चावल लेकर  टिहरी पहुंची। जनता में राजशाही के खिलाफ इतना आक्रोश था कि राजतंत्र के लोगों की जान बचाने को टिहरी जेल में बंद करना पड़ा। उसी दिन राजशाही का आखिरी दिन था। प्रजामंडल की सरकार बन गई। तब सुंदर लाल बहुगुणा प्रजामंडल के मंत्री थे लेकिन वे सरकार में शामिल होने की बजाय कांग्रेस के महामंत्री बने। वे घंटाघर के पास कांग्रेस के दफ्तर में रहते थे। तब शराब का प्रकोप जोरों पर था। सबसे खराब स्थिति टिहरी शहर की दलित बस्ती की थी। यहां के पुरुष शराब के नशे में रात में अपने परिवार के साथ गालीगलौज और मारपीट करते थे। इसस...

हेंवल घाटी से बदली चिपको आंदोलन की दिशा, पीएसी लौटी बैरंग

अदवानी में वनों को बचाने को पहुंचे ग्रामीण   चिपको आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे रिचर्ड सेंट बार्बे बेकर  Click here for english version बहुगुणा ने यहीं दिया क्या हैं जंगल के उपकार मिट्टी  पानी और बयार, नारा वनों को बचाने के लिए हथकड़ी पहन कर पहली बार जेल गए आंदोलनकारी  कुंवर प्रसून ने इजाद किए आंदोलन के नए-नए तरीके, आंदोलन के लिए नारे भी गढ़े वनों को लेकर बहुगुणा के विचारों को हेंवलघाटी में मूर्त रूप मिला। यहां लोग पेड़ों को आरों से बचाने के लिए उन पर न केवल चिपक गए बल्कि पुलिस और पीएसी का सामना करने के साथ ही बाकयदा हथकड़ी पहन कर जेल भी गए। सुदर लाल बहुगुणा ने यहीं नारा दियाः- क्या हैं जंगल के उपकार मिट्टी पानी और बयार।  बहुगुणा की प्रेरणा से धूम सिंह नेगी ने स्थानीय स्तर पर आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया तो कुंवर प्रसून ने आंदोलन केे लिए नए-नए तरीके इजाद किए और नारे गढ़े। आंदोलन में प्रताप शिखर, दयाल भाई, रामराज बडोनी, विजय जड़धारी, सुदेशा देवी, बचनी देवी और सौंपा देवी समेत दर्जनों महिलाओं युवाओं और छात्रों की अहम भूमिका रही। बकौल रामराज बडोनी आंदोलन सुंदर लाल ब...

चीड़, सफेदा, पौपलर नहीं लगेगा, धरती मां के दुश्मन हैं

सिंहुता में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कृष्णमेट   बहुगुणा जी की डायरी से हरे पेड़ों की कटाई पर रोक के बाद वृक्षारोपण पर दिया जोर, फाइव एफ ट्री का दिया नारा हिमाचल में नर्सरियों से सफेदा और चीड़ के पौधे उखाड़े, उपमन्यु समेत तीन लोग गए जेल विदेशी प्रजाति के प्रकृति के लिए घातक पौधे लगाने का किया विरोध, उनकी जगह पंच जीवन पौधे रोपे कोयले की भट्टियां उजाड़ी कहा, सूखी लकड़ी पर पर पहला हक स्थानीय लोगों का सिल्यारा में वन विभाग के दफ्तर पर महिलाओं ने दिन में छिलके जलकर किया प्रदर्शन हरे पेड़ों के कटान पर रोक के बाद सुंदर लाल बहुगुणा ने वृक्षारोपण पर ध्यान केंद्रित किया। अपनी लंबी यात्राओं से उन्हें प्राकृतिक वनों में एकल प्रजाति के पौधे लगाने  और खासकर चीड़, पौपलर और सफेदा (यूकेलिप्टिस) से धरती को पहुंचने वाले नुकसान का व्यावहारिक ज्ञान हो गया था। एकल प्रजाति के और विदेशी पौधे लगाने का विरोध करते हुए उन्होंने स्थानीय लोगों की जरूरत के मुताबिक खाद्य,चारा,खाद,रेशा और जलाऊ लकडी प्रदान करने वाले पारंपरिक पंच जीवन पौधे ही लगाने की बात कही। इसके लिए उन्होंने फाइव एफ ट्री(फूड, फौडर, फर्टी...