सिल्यारा गांव में पनचक्की चलाते सुंदर लाल बहुगुणा
पदयात्रा के दौरान ग्रामीणों का हाल जानते सुंदर लाल बहुगुणा
सुंदरलाल बहुगुणाः 10ः क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार
चिपको आंदोलन की शुरुआत वन पर गांवों के अधिकार के विचार के साथ हुई। तब यह सोच उपजी कि वनों के व्यापारिक दोहन से ही वन समाप्त हो रहे हैं। ठेकेदार मुनाफे के लिए आवंटित पेड़ों से कई ज्यादा पेड़ काट डालता है। नुकसान स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ता है। ऐसे में वन सहकारी समिति के माध्यम से स्थानीय लोगों को वन आधारित रोजगार का विचार पनपा। उत्तराखंड सर्वोदय मंडल की स्थापना हुई और आनंद सिंह बिष्ट इसके अध्यक्ष बने। सर्वोदय सेवकों ने अपनी संस्थाओं के माध्यम से वन आधारित उद्योग लगाने शुरू कर दिए। चंडी प्रसाद भट्ट ने दशोली ग्राम स्वराज मंडल की स्थापना की। दशोली ग्राम स्वराज मंडल को अपनी आरा मशीन के लिए पांच पेड़ नहीं मिले उधर खेलकूद का सामान बनाने वाली इलाहाबाद की साइमन कंपनी को मार्च 1973 में चमोली जिले में अंगू के हजारों पेड़ आवंटित कर दिए गए। साइमन कंपनी ने देहरादून की सरकारी स्पोट्रर्स कंपनी के सहयोग से चमोली में पेड़ काटने की योजना बनाई। अंगू के पेड़ से ग्रामीण खेतों में हल जोतने के लिए बैलों का जुआ बनाते हैं। इससे ग्रामीणों में असंतोष पनप गया। मंडल और फाटा में ग्रामीणों ने आंदोलन कर जंगल से कंपनी के मजदूरों को पेड़ नहीं काटने दिए। जून से दिसंबर के बीच कई प्रयासों के बावजूद कंपनी ग्रामीणों के आंदोलन के चलते पेड़ नहीं काट पाई और उल्टे पांव लौट गई। जोशीमठ के पास रेणी में गौरा देवी की अगुवाई में वहां की महिलाओं ने वन काटने आए मजदूरों को बैरंग लौटने को मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा हम अपने पाले पोसे पेड़ों को कटने नहीं देंगे।
उधर सुंदर लाल बहुगुणा चिपको आंदोलन का संदेश पूरे उत्तराखंड में फैलाने के लिए पैदल निकल पड़े। अपनी यात्राओं के दौरान सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के फायदों को बारीकी से समझा। उन्होने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधे रखने और जल संरक्षण की क्षमता है। उन्होने देखा कि जिन इलाकों में वन कटान हुआ वहां आपदाएं आईं। उन्होंने कहा कि वनों की असली देन तो मिट्टी पानी और हवा है। तर्क दिया कि वनों का पहला उपयोग पास रह रहे लोगों के लिए हो। उससे उन्हें अपनी जरूरत की चीजें खाद्य पदार्थ, घास, लकड़ी और चारा घर के पास ही सुलभ हों। इससे लोगों में वनों के प्रति वन संरक्षण की भावना बढ़ेगी। उन्होंने नारा दिया-
क्या हैं जंगल के उपकार मिट्टी पानी और बयार,
मिट्टी पानी और बयार जिंदा रहने के आधार।
वन कटान का व्यापक विरोध होता देख उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने सुंदर लाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट को बातचीत के लिए 24 अप्रैल 1974 में लखनउ बुलाया। सुंदर लाल बहुगुणा ने अपनी यात्रा के अनुभवों को बताते हुए पहाड़ों में व्यापारिक वन कटान पर तत्काल रोक लगाने की आवश्यकता जतायी। वन कटान पर रिपोर्ट देने के लिए दिल्ली के जाकिर हुसैन काॅलेज के वनष्पति विज्ञान के प्रोफेसर वीेरंद्र कुमार की अध्यक्षता में समिति गठित हुई। समिति अपना काम करती रही लेकिन वनों को काटने के लिए नीलामी प्रक्रिया दोबारा चालू हो गयी। अक्टूबर 1974 में उत्तरकाशी में वनों की नीलामी के विरोध में सुंदर लाल बहुगुणा उपवास पर बैठ गए। यह उपवास उनका दो हफ्ते तक चला।
जारी------
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