सुन्दर लाल बहुगुणा की डायरी से |
मीरा बेन के आलावा सुंदर लाल बहुगुणा गांधी जी की दूसरी अंग्रेजी शिष्या सरला बहन के संपर्क में भी आए। यह वही सरला बहन थी जिनके कौसानी आश्रम से तालीम पाकर विमला बहुगुणा ने सुंदर लाल बहुगुणा से शादी के लिए राजनीति छोड़कर गांधी जी के ग्राम स्वराज के विचार को अमली जामा पहनाने की शर्त रखी थी। टिहरी से 20 मील पैदल दूरी पर सिल्यारा में झोपड़ी डालकर शादी के बाद बहुगुणा दंपत्ति ने ग्राम स्वराज और स्वाबलंबी गांव का प्रयोग सिल्यारा के ग्रामीणों के बीच शुरू कर दिया। इसमें सबसे बड़ी बाधा गांव के युवकों की शराबखोरी थी। बहुगुणा दंपत्ति ने सिल्यारा में पर्वतीय नव जीवन मंडल की स्थापना के साथ ही गांव में महिलाओं के सहयोग से कच्ची शराब की भट्टियां तुड़़वाईं। पुरुषों से भविष्य में कभी भी शराब नहीं पीने का संकल्प लिवाया गया। बहुगुणा दंपत्ति दिन में गांव में ग्रामीणों के साथ खेतों में काम करते और रात को महिलाओं और बच्चियों को गांव के ऊपर बनी अपनी झोपड़ी में पढ़ाते। दिन में बच्चों के लिए स्कूल भी शुरू कर दिया गया। बहुगुणा दंपत्ति गांव वालों के बीच इस कदर घुल-मिल गए कि दिन में उनके स्कूल में सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ने आने लगे लेकिन लड़िकयां और महिलाएं तो घर का काम निपटा कर रात को ही पढ़ने आ पाती थीं। वहां उन्हें पढ़ाई के अलावा सिलाई कताई बुनाई भी सिखाया जाता था।
इस दौरान एक बार बिनोबा भावे ने सुंदर लाल बहुगुणा से कहा कि देश भर में घूम कर गांधी का संदेश फैलाओ। बिनोबा भावे ने कहा कि यह बुड्ढा तो घूम-घूम कर अपनी हड्डियां तोड़ रहा है और तुम एक जगह बैठे हो। उधर सरला बहन ने भी सुंदर लाल बहुगुणा से कम से कम उत्तराखंड भर में घूम कर गांधी का विचार फैलाने को कहा।
दोनों की सलाह पर सुंदर लाल बहुगुणा सिल्यारा का स्कूल और आश्रम अपनी धर्मपत्नी विमला के हवाले कर लंबी यात्राओं पर निकल पड़े। ऐसी ही एक लंबी पैदल यात्रा के बाद सुंदर लाल बहुगुणा जब सिल्यरा लौटे तो उन्हें पता चला कि सिल्यारा में कुछ लोग फिर से कच्ची शराब बनाने लगे हैं और युवक फिर से नशे की लत में फंस गए हैं। गांव के युवकों को बहुगुणा दंपत्ति ने शराब न पीने का संकल्प लिवाया था। ऐसे में दुखी सुंदर लाल बहुगुणा गांव के नीचे एक पेड़ के नीचे उपवास पर बैठ गए। उन्होंने कहा यह उनका प्रायश्चित है। महिलाओं ने सुंदर लाल बहुगुणा को अनशन तोड़ने का आग्रह करते हुए फर से शराब के खिलाफ अभियान छेड़ने की बात कही। तीन दिन सुंदर लाल बहुगुणा ने महिलाओं के इस आश्वासन पर अपना उपवास तोड़ा कि यदि उनके पुरुष फिर से शराब पीएंगे तो वे भी घर में अनशन कर देंगी।
इसी बीच वर्ष 1965 में सिल्यारा से कुछ दूर घनसाली कस्बे में शराब की दुकान खुलने की खबर आई। पता चला कि एक स्थानीय व्यापारी को सरकार ने शराब का ठेका दे दिया है। बहुगुणा घनसाली पहुंचे। वहां उन्होंने मद्यिनिषेध समिति बनाई। रामलीला और नाटकों के माध्यम से शराब के दुष्परिणामों से लोगों को अवगत कराया गया।सुंदर लाल बहुगुणा खुद वहां उपवास पर बैठ गए। वहां के कई प्रतिष्ठित लोगों ने शराब की दुकान के विरोध में सुंदर लाल बहुगुणा का साथ दिया। इनमें रिटायर्ड एसडीएम बालकृष्ण नौटियाल और रिटायर्ड जज सुरेंद्र दत्त नौटियाल भी थे। उधर कौसानी आश्रम से सरला बहन भी अपनी टोली के साथ वहां पहुंच गईं। धीरे- धीरे आंदोलन के साथ बड़ी संख्या में लोग और खास कर महिलाएं जुड़ गईं। परिणाम यह रहा कि ठेकेदार शराब की दुकान नहीं खोल पाया। उसके बाद सुंदर लाल बहुगुणा की अगुवाई में लंबगांव, बादशाही थौल चिरिबटिया और चंबा में शराब के खिलाफ व्यापक आंदोलन हुए। मजबूरन सरकार को शराब के ठेके रद्द करने पड़े।
जारी.......
बहुत सुंदर जानकारी साझा की गई है। धन्यवाद।
ReplyDelete